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________________ 28 ] [ जीवनपतिः पंन्यास पदने धारण करवानी योग्यता आवी गई छे. मृतनु पान करवा छतां अतृप्त ज रह्या. आथी तेमना आथी मारे तेमने पंन्यासपद अर्पण करवु जोई. आग्रहथी तथा पूज्योनी आज्ञाथी 1991 नु चातुर्मास पूज्यश्रीना आ विचारनी आ बंने मुनिपुंगवोने खबर | पण तेमणे मुंबई-लालबाग ज कयु. पडता तुरत तेओझे पूज्यश्रीने विनंती करीके-| आ बे चातुर्मास दरमीयान लालबागना संधे गुरुदेव ! आ पद माटे अमारी कोई योग्यता नथी. | | जोयु हतुके-पू० पं० श्रीक्षमा वि० मनी निःस्पृहता क्यां आपना जेवा महापुरुषोनु गंभीरता, विद्वत्ता, | | अजब कोटिनी हती. विद्वत्ता पण असाधारण हती. वात्सल्यभाव वगेरे गुणोनी सुवासथी मघमघतु / वक्तृत्त्र शक्ति पण प्रबळ हती. संयमनु पालन जीवन अने क्या अनेक दोषोथी दूषित अमाझं जीवन. अप्रमत्तपणे करता हता. तेमनी दरेक प्रवृत्तिमां संयकागनी डोकमां मोतीनी माला न शोभे तेम आ पद मनी झलक जणाती हती. स्वभाव पण मध जेवो अमारा जेवाथी नहि शोभे. अमने आपनी कृपा सिवाय मीठो हतो. तेमना अक अंक वचनमा वात्सल्य भयु अन्य कई ज न जोई. आपनी कृपा अमारा माटे हतु. ब्रह्मचर्य व्रत विषे तेओ बहु सावध रहेता सर्वस्व छ. हता. उपाश्रयमां कवेळा कदी स्त्रीओनो संचार थतो ___ पण पूज्यपादश्री क्यां समजता न हता के गुण-न हतो. पू. साध्वीजी म. साथे पण तेओ बहु परिवान मनुष्यो पोताने कदी गुणवान कहे नहि. तेमणे | चय राखता न हता. . उक्त मुनिवर्याने पंन्यासपद प्रदान करबानी पोतानी आ वारसो तेमने पू० श्रीदानसूरीश्वरजी म० इच्छाने मूर्त स्वरूप बनाववा प्रयत्नो शरू करी दीधा. | | तथा पू० उपाध्याय श्रोप्रेमविजयजी गणिवर्यनी परिणामे वि० सं० 1990 मा फागण सुद चोथना | पासेथी मल्यो हतो. मे वारसो आजे पण सुसंयमी. दिवसे शुभ मुहूर्ते जैन विद्याशालाना विशाल होलमा | | ओने मळतो रहे छे. मे बने पूज्यो साधुओना जंगी मानवमेदनीनी वच्चे पू० वयोवृद्ध संघस्थविर | ब्रह्मचर्यमां जरा पण आंच न आवे ओ माटे सतत आचार्यदेव श्रीसिद्धिसूरीश्वरजी महाराजना पुण्यहस्ते काळजी राखता हता. तेओ दरेंक स्थळे स्त्रीओने अकाळे आ बंने मुनिपुगबोने पंन्यासपदथी अलंकृत करवामां उपाश्रयमा आववानो कडक निषेध करता. कारण के आव्या. आ समये पू0 आचार्य श्रीदानसूरिजी महा पांच महाव्रतोमां ब्रह्मचर्य व्रतनु निरतिचार पालन राजे तथा महोपाध्याय श्रीप्रेमविजयजी महाराजे करवु घणु ज दुष्कर छे. स्त्रीओनो परिचय व्रतना तेमना मस्तके वासक्षेप नाख्यो अने पदनी सफलताना पालनमां बाधक बने छे. स्त्रीनी मोहिनी झरने आदीर्वाद आप्या. पीनारा अने श्मशानमा रहेनारा नीलकंठ शंकरने पण मुंबईना आंगणे नचाव्या हता. जंगलना जोगी विश्वामित्र पण मेनकाना रूपना निरीक्षणथी मुग्ध बनी गया हता. अरणिक प. पंन्यास श्रीक्षमा वि०म०पू० श्रीदानसूरी- | मनिवर जेवा महापुरुष पण स्त्रीकटाक्षनी जंजीरमा श्वरजी म.नी आज्ञाना चीले ज चालता हता. आथी जकडाई गया हता. तो पछी आजना साधुओओ पण पूज्यश्री तरफथी मुबई जवानी आज्ञा थतां तेमणे | ब्रह्मचर्यनी रक्षा माटे पूरे पूरी तकेदारी राखवी जोई. अमदाबादथी मुबई तरफ विहार कों. 1990 नु चातुर्मास तेमण मुंबई लालबाग कयु. मुंबई लालबाग | | पूज्य पं० श्री क्षमावि. जी महाराजे आ बे चातुउपाश्रयमा आवनार भाविकोने आ प्रथम बार ज | सिमां प्राचीन ग्रन्थोना संपादन-संशोधनन कार्य पू० पं० श्री क्षमा वि० गणिवर्यनी वाणीनु अमृत | हाथ धयु हतु. आ अवसरे हैमप्रकाश पूर्वार्ध, सावपीवा मल्यु हतु. अमनी वैराग्यना रंगथी रंगायेली | चूरि हैमलिंगानुशासन, स्वोपज्ञविवरणादियुक्त हैमवाणीनी असर जनता उपर घणीज सुदर पडी हती. लिंगानुशासन, मध्यमवृत्त्यवचूरियुक्तसिद्धाहेमशब्दानुत्यांना श्राक्को अनेक महिनाओ सुधी तेमना वचना- शासन वगेरे ग्रन्थोनु संपादन-संशोधन चालतु तु.
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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