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________________ [27 तरीके जीवनपति ] कर्यो. पू० क्षमा वि० महाराजे पण तेमनी साधे ज | अन्य पण सावचूरि हैमलिंगानुशासन, सावचूरि चातुर्मास करवानी इच्छाथी तेमनी साथे ज विहार | मध्यमवृत्ति, बृहट्टीकायक्त हैमलिंगानुशासन वगेरे को. आ चातुर्मासमां तेमणे कर्मसाहित्यसुधासिन्धु | अनेक ग्रन्थो प्राप्त थया, के जे ग्रन्थोनु प्रकाशन पृ० महोपाध्यायजी पासेथी मलता कर्मसाहित्यना | अत्यन्त जरूरी हतु. रसनु पान कयु. पंन्यास पद प्रदान हैमप्रकाशनी प्राप्ति ___त्यारबाद 1989 नु चातुर्मास अमदागद पू० श्री क्षमा वि० ना जीवन-उपवनने प्रथम महोपाध्याय श्रीप्रेम वि०म० नी निश्रामा कर्य'. आ| पू० श्रीअमी वि० महाराजे वात्सल्यवारिथी सिंच्य', चातुर्मासमां तेमने विद्याशाळाना हस्तलिखित प्रतना | त्यारबाद पू० श्रीदानसूरिजी म० नी कृपारूपी सहस्ररभण्डारमाथी वैयाकरणशिरोमणि महोपाध्याय | श्मिनी ज्योति प्राप्त थई. आथी ते खूब विकसित बनी श्रीविनय विजयजी म. विरचित हैमप्रकाशनी प्रत | गपुं. हवे तेमाथी खुशबो चारे बाजु फेलावा लागी. अथी प्राप्त थई. आ प्रतनी प्राप्तिथी तेमने अंध माणसने | सौ कोई पू०क्षमा वि०म०तरफ अंक आदर्श साधु चक्षु प्राप्त थतां जे मानन्द थाय तेनाथी पण अधिक आकर्षाया. तेमनी निःस्पृहता, गंभीरता, उदारता, आनन्द थयो. कारण के पू० क्षमा वि० जी म० बालक तुल्य निखालसता वगेरे गुणो जोईने सौ मुमुक्षु अवस्थामा हता त्यारे तेमणे पू० गुरुदेव श्री- कोईने तेमना उपर बहुमान थई जतु. तेओ पू० अमी वि० म० पासे लघुवृत्तिनो अभ्यास शरू को श्रीदानसूरीश्वरजी म. नी छत्रछाया स्वीकार्या बाद हतो. पण प्रव्रज्या बाद थोडा ज़ संमयमां लघुवृत्तिनो | जेटली निष्ठाथी गुरुनी आज्ञानु पालन अने सेवा ' छोडीने महोपाध्याय श्रीविनय वि०म० करता हता. तेटलीज निष्ठाथी पज्यपाद श्रीदानसूरीविरचित "हैमलघुप्रक्रियानो" अभ्यास शरू को श्वरजी म. नी तथा महोपाध्यायजीनीआज्ञानुपालन हतो. आ वखते तेमणे पू. गुरुमहाराज पासेथी अने सेवा करता हता. तेमणे विनयमां कदी कचाश जाण्य हतु के आ हैमलघुप्रक्रिया उपर पू. राखी न हती. लांबा काळ सुधी पू० महोपाध्यायजीनो उपाध्यायजी महाराजे बृहद् टीका पण रची छे. आथी | साथे रहेतां पु० क्षमा वि० म० नो पू० मु० श्री तेमणे गुरु साथे ज्या ज्यां विहार कर्यो त्यां त्यां सर्वत्र जम्बू वि० म० ( हाल सूरि ) साथे घणो ज घनिष्ठ * तेनी शोध करी. अन्य स्थळोजे पण तपास करावी. | संबंध थई गयो हतो. बंने अक बीजाना प्रेमना पात्र छतां से टीका तेमने प्राप्त न थई. आ समये तेमने बनी गया हता. पू. जंबू वि० म० पण स्वगुरुदेव काक अणधारी आ प्रतनी प्राप्ति थई गई. आ पूर्व महोपाध्यायजी श्रीप्रेमविजयजी गणिवर्यनी सेवानो तेमणे गुरुनी पासे ज हैमलघुप्रक्रिया, बृहवृत्ति, पर्ण लाभ उठात्रता हता. तेओ बने पू0 श्रीदानसूरिजी हैमलिंगानुशासन वगेरे व्याकरणना ग्रन्थोनु संगीन म ना तथा पु० श्रीमहोपाध्यायजीना वात्सल्यामृतना अध्ययन करी लीधुहतु. आथी तेओ वैयाकरणोनी | पात्र बनी गया हता. से बने महानुभावो विद्वान अने कोटिमा आवी गया हता. आ प्रतनु निरीक्षण करतां | अनेक गुणोना भाजन हता. तेमने आ ग्रन्थनी महत्ता समजाणी. आथी तेमना हृदयमां आ प्रन्थनु प्रकाशन कराववानी भावना - आथी ज पू० आचार्य भगवंत श्रीदानसूरिजी प्रगटी. आथी तुरत हैमप्रकाशनी प्रेस कोपी तैयार म० विचारी रह्या के-आ बंने मुनिओनी आत्मसाधना करावी लीधी. अहीथी तेमनी संशोधन-सम्पादन | उत्तरोत्तर उत्कर्षने पामी रही छे, साथे साथे गुणोनो करवानी प्रवृत्तिना पगरण मंडाया. हवे तेओव्याकरण | विकास पण वधतो जाय छे. तेमना बाहु शासनना साहित्यना अप्रकाशित ग्रन्थोनी शोधमा रहेवा लाग्या. | भारने वहन करवाने शक्तिमान बनता जाय छे. तेमनी प्राचीन अप्रकाशित ग्रन्थोनी शोधखोळ करतां तेमने | विद्वत्तानी वेलडी पण आगळ वधी रही छे. बनेमां अभ्यास
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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