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________________ 26 ] [ जीवनपति जीवन-नौकाना कर्णधार पृ० अमी वि० म० आ मनुष्य | जातना प्रतिबंध विना अस्खलित पणे चलावी रह्या लोकमांथी विदाय थई गया. हता. तेओ शासनना अक वफादार सुभट हता. ज्यारे विलापनु वलोणु / ज्यारे शासन उपर विपत्तिओ आवती त्यारे त्यारे तेओ पोताना प्राणनी पण परवा कर्या विना वफादारीना पोते हसता गया, पण अनेकने रडता मूकी लोही रेडता हता. कटोकटीना प्रसंगोमां पण शासनना गया. जे घटादार वृक्ष उपर अनेक पक्षीओ विश्राम सिद्धांतोनु रक्षण करता हता. तेमणे पोताना दिव्य करता होय, जेनी उपर बेशीने मधुर किलकिलाट | जीवननी ज्वलंत ज्योतमांथी अनेक प्रदीपो प्रगटाव्या करता होय, उनाळानी गरमीमां मधुर हवा लेता होय, हता. अमांथी केटलाक प्रदीपो से समये शासन उपर जेना फलो आरोगीने तृप्त बनता होय मे वृक्ष काक पूर्ण झगमगतो उज्ज्वल प्रकाश पाथरी रह्या हता. अणधार्य पडी जाय त्यारे ते पंखीओने केटलुदुःख तेमांनो अक प्रदीप हतो प० पू० महोपाध्याय श्रीथाय ? अथी पण अधिक दुःख पू० अमी वि० म० ना प्रेमविजयजी गणिवर्य ( हाल सूरिपुरन्दर ).आ समये स्वर्गवासथी चतुर्विध संघने थयु. सौथी बधारे दुःख पू० उपाध्याय श्रीप्रेमविजयजी महाराज पाटणनी . पू० मु० श्रीक्षमा वि० महाराजने लाग्यु. गुरुना | प्रतिष्ठाने प्रबल बनावी रह्या हता.. विरहथी तेमना अंतरमा विलापनु बलोणु घूमया सामागीहारिलो नोनियामां लाग्यु. अरे ! आ अकाअक शु थयु ? शुकर्मराजाने . अमनी उन्नति जोइने ईर्ष्या थई के शु ! अरे ! | वि० सं 1987 ना पालीना चातुर्मासमां पू० गुरुदेव ! तमे क्यां गया ! हवे मारी जीवन नौका क्षमा वि० म० ने गुरुनो विरह थयो. आ चातुर्मास कोण चलावशे! विपत्तिनो वायु वाशे त्यारे तेनुरक्षण | बाद तेओ तुरत त्यांथी विहार करी गुजरातमां पाटण कोण करशे ! हवे हुगुरुदेव ! गुरुदेव ! अम कहीने आव्या. आ समये तेमने महोपाध्याय श्रीप्रेमविजयजी कोने बोलावीश ! हवे मने क्षमाधिजय ! अवा मधुर गणिवर्यना दर्शन थया. तेमने माटे,आ महापुरुषना वचनोथी कोण बोलावशे! दर्शन सर्वप्रथम हता. अहीं तेमणे पू०महोपाध्यायजीनी जीवननौकाना सुकानीनी शोधमा / शीतल छायामां महानिशीथना योग कर्या. बाद गिरिराज श्रीसिद्धगिरिनी यात्रा करवा पालीताणा ___“दुःखनु औषध दहाडा" से कहेतानुसार आव्या. हवे तेमनु मन सकलागमरहस्यवेदी पू० थोडा दिवसो बाद पू० क्षमा वि० म० नुगुरु विर- आ० श्रीदानसूरिजी म. नी निर्मल निश्रामा रहेवा हनु दुःख धीमे धीमे ओछु थवा लाग्यु. मन | उत्कंठित बन्यु. आथी तेओ पालीताणाथी खंभात स्वस्थ थतुगयु. हवे तेमनु मन पोतानी जीवन आव्या. आ समये तेमने पू० दानसूरिजी म० ना नौकानु सुकान सारी रीते संभाळी शके अवा अक | दर्शनथी जे आनन्द थयो ते अवर्णनीय हतो. तेमणे सुकानीनी शोध माटे उपडी गयु. फरता फरता तेणे हर्षना अश्रुथी आचार्य भगवंतना चरणोनु प्रक्षालन अक कुशल सुकानीनी पसंदगी करी लीधी. अ सुकानी कयु. तेननु अन्तर पोतानी जीवननौका पू० आचार्य हता सकलागमरहस्यवेदी परमकारुणिक पू. आचार्य भगवंतने सोंपीने तेमनी कृपादृष्टिमां समाई जवा देव श्रीमद्विजयदानसूरीश्वरजी महाराज. आ समये | मथतु हतु. पू. आचार्य भगवंते पण उदार दिलथी तेओ खंभात विराजता हता. तेमनी साथे कविकुल- | तेमनी जीवननौका संभाळी लीधी अने पू० शमा वि० किरीट आचार्य भगवंत श्री लब्धिसूरिजी म० आदि | म० ने पोतानी कृपादृष्टिमा समावी लीधा. खरेखर ! पण हता. महापुरुषोनी उदारता अजब कोटिनी होय छे. पूआचार्य भगवंत श्रीदानसूरीश्वरजी म. पू.आ० श्रीदानसूरि मनु चातुर्मास वढवाण नकी अनेक संयमी जीवोनी जीवन-नौकाने कोई पण | थयु होवाथी तेमणे खंभातथी वढवाण तरफ विहार
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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