SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12 ]. [ उपोद्घात - ___ दा० (४)-पाणिनीय व्याकरणना "विभाषा / व्यक्ति अपंचांग परिपूर्ण बनाव्यु', भने ते पण चत्वारिंशत्प्रभृतौ सर्वेषाम्" (6 / 3 / 49 ) मे सूत्रना | अंक ज वर्षमां. विषयने 'सिद्धहेम' मां ‘चत्वारिंशदादौ वा से सूत्रथी सिद्धराज राजाने आ व्याकरण उपर अत्यन्त टुकमां बताववामां आव्यो छे. श्रद्धा, बहुमान अने भक्ति हती. तेमणे आ व्याकरण आ सिवाय अन्य पण आवां अनेक दृष्टांतो तैयार थयु त्यारे सुवर्णाक्षरे लखावो तेनो वरघोडो छे. तेमाथी केटलांक दृष्टांतो लघुवृत्ति आदि ग्रन्थोनी काठ्यो हतो. तेमनी सहायथी अनेक रीते आ व्याकरप्रस्तावनामां प्रसिद्ध थई गयेला छे. आथी पिष्टपेष- णनो प्रचार करवामां आव्यो. त्रण सो लहीयाओने णना भये अत्रे तेनो उल्लेख नथी करतो...... | रोकीने त्रण वर्ष सुधी ते व्याकरणनी अनेक प्रतो आ प्रमाणे पाणिनीयव्याकरणना सयोनी लखावीने भण्डारोमा सुव्यवस्थित रीते मकवामां अपेक्षाओ सिद्धहेमव्याकरणना सूत्रोमां लाघवता साथे आवी. तथा अध्ययन करवा कराववा अढार देशोमां सरळता पण रहेली छे. पाणिनीय सूत्रोमां स्थाने | तेनो प्रचार करवामां आव्यो. स्थाने अर्थनी संकुचितता देखाय छे. अथीज तेना त्यारबाद अनेक विद्वानोभे सिद्धहेम उपर उपर वार्तिकनी रचना करवी पड़ी. ज्यारे सिद्धहेममां | विविध साहित्यनु निर्माण कयु. आधी से व्याकरण अर्थनी विशाळता अने गम्भीरता देखाय छे. सिद्ध- | आज बृहद्वृत्ति, मध्यमवृत्ति, लघुवृत्ति, रहस्यहेमनी अनेक विशेषतामोमां अक विशेषता से पण छे | वृत्ति वगेरे अनेक वृत्तिओथी विभूषित बन्युछे. के सूत्रोमा आवता शब्दो रोचक अने व्यवहारप्रसिद्ध छ. आथी अभ्यासक वर्गने तेनो बोध शीघ्र थई जाय मध्यमवृत्तिना प्रणेता कोण ? छे. पाणिनीय व्याकरणनी संपूर्णता अनेक व्यक्ति- / कलिकाल सर्वज्ञ भगवते सिद्धहेम व्याकरण ओना सहकारथी थई.ज्यारे सिद्धहेमने अकज उपर वृत्ति स्वयमेव रची छे निर्विवाद छे. पण ★महर्षि पाणिनिने मात्र सूत्रो रच्या. ते सूत्रो उपर वररुचिने (अन्य नाम कात्यायन) वार्तिकनी रचना करी. जयादित्य अने वामन श्रेबे विद्वानो काशिकात्तिनी रचना करी. लिंगानुशासन धातुपाठ, कोश वगेरेनी रचना पण अन्य अन्य व्यक्तियो करी छे. ..卐 सूत्र, धातुपाठ, गणपाठ, उणादि अने लिंगानुशासन में व्याकरणना पांच अंगो छे. * पा रहस्य वृत्ति लगभग 2500 श्लोक प्रमाण छे. जेप्रो लघुवृत्तिने कंठस्थ न करी शके तेश्रो पा रहस्य वृत्तिने कंठस्थ करीने पण सिद्धहेममा प्रवेश करी शके छे. या ग्रन्यनु संपादन-संशोधन पंडित सुश्रावक प्रभुदास बेचरदासे कयु छ; अने प्रकाशन श्रीजैन श्रेयस्कर मंडल तरफथी करवामां आव्यु छे. आ ग्रन्थ मोटी साइझमां छपायो छे. पण आ ग्रन्थ कंठस्थ करवामां उपयोगी होवाथी नानी साइझमा प्रकाशन करवानी आवश्यकता छे. कंठस्थ करवा माटे या वृत्ति जेम मंद स्मरण शक्तिवालाोने उपयोगी छे तेम तीव्र स्मरण शक्तिवालाअोने पण उपयोगी छे. कारण के वृत्तिने कंठस्थ कर्या पछी तेने टकाववा तेनी पुनः पुनः परावृत्ति अनिवार्य बने छे. या वृत्तिनु प्रमाण अल्प होवाथी तेनी पुनः पुनः प्रावृत्ति करवामां घणीज अनुकूलता रहे, घणा दीर्घ काल सुधी तेनी प्रावृत्ति थइ शके. आथी सूत्रो तथा वृत्तिना संस्कारो मगजमां दृढ थाय, कयो विषय क्यां छे तेनो पण ख्याल रहे. या वृत्तिनी रचना सूत्रार्थनो बोध थवामां अनिवार्य शब्दो ज वापरीने अत्यंत संक्षेपमा करवामां प्रावी छे. ज्यां वृत्तिनी आवश्यकता न जणाई त्यां केवल उदाहरणादि ज बताववामां आवेल छे. छतां सूत्रार्थनो बोध थवामां हरकत नथी पावती. अनेक सूत्रोमांउदाहरण के प्रत्युदाहरण पण नथी आपवामां पाव्या. पाथी सिद्धहेममां शीघ्र प्रवेश करवा पा वृत्ति पण घणी ज उपयोगी छे अम मारमान छे........
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy