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________________ उपोत्यात ] में निबद्ध करना अच्छा समजा जाता है / अल्पवाक्यों | संज्ञानु विधान करवा ‘कृत्तद्धितसमासाश्च' भे सूत्रन वाले प्रकरण एवं अल्पाक्षरों वाले सूत्रो में प्रतिपाद्य | प्रणयन करवु पड्य. वळी "अर्थवदधातुरप्रत्ययः विषय को प्रगट किया जाय तो रचना सुदर और प्रातिपदिकम्" से सूत्रमा जेम धातु अने प्रत्ययमां विस्तार दोष से मुक्त समजी जाती है। हेम ने उक्त प्रातिपदिक ( नाम ) संज्ञानु निवारण कयु तेम सिद्धान्त का पूर्णतः पालन किया है / जिसप्रकार की 'वाक्यमां' नाम संज्ञानु निवारण न कयु", आथी शब्दावली के अनुशासन के लिये जितने और जैसे 'कृत्तद्धितसमासाश्च' सूत्रमा समासनु ग्रहण करीने सूत्रों की आवश्यकता थी, इन्होंने वैसे और उतने ही वाक्यमा प्रातिपदिक (नाम) संज्ञानो निषेध को. सूत्रों का प्रणयन किया है / अक भी सूत्र असा नहि ज्यारे श्रीहेमचन्द्रसूरिजीओ 'अधातुविभक्तिवाक्यमहै जिस का कार्य दूसरे सूत्रसे चलाया जा सकता है।"5 र्थवन्नाम' भेज सूत्रमा वाक्यनु ग्रहण करीने तेमां | नामसंज्ञानु निवारण कयु. श्रीहेमचंद्रसूरिजीओ क ज पाणिनीय व्याकरणनी क्लिष्टता सूत्रमा जेटला विषयने गुथी लीधो तेटला विषयने अने सिद्धहेमनी सरळता | महर्षि पाणिनि बे सूत्रो करीने पण न गुथी शक्या. . अत्यारे सांप्रदायिक मत बाहुल्यना कारणे प्रातिपदिक संज्ञामां बोधनी दृष्टि क्लिष्ठता पण छे. पाणिनीय व्याकरणनो प्रचार अधिकतम भले होय; "धातु, प्रत्यय अने प्रत्ययान्तथी भिन्न अर्थवान शब्दनी पण सरळतानी दृष्टि तुलना करवामां आवे तो प्रातिपदिक संज्ञा छे" अम जाण्या बाद नूतन विद्यार्थीने पाणिनीय व्याकरणनी अपेक्षा सिद्धहेमशब्दानु प्रश्न थाय के प्रातिपदिक भेटले शु? आथी अहीं नूतन शासन अति सरळ छे. दाखला तरीके 3 विद्यार्थीने समजावयु पडे के प्रातिपदिक भेटले नाम. ज्यारे 'नाम' संज्ञा करवामां आ प्रश्नने अवकाश (1) महर्षि पाणिनि “अर्थवदधातुरप्रत्ययः | नथी रहेतो. प्रातिपदिकम्” (12 / 45) तथा "कृत्तद्धितसमासाच" (1 / 2 / 46) से बे सूत्रोथी शब्दनी 'प्रातिपदिक' (नाम) ___ दा० (२)—पाणिनीय व्याकरणमां हेतु, कर्ता, संज्ञा करी छे, ज्यारे श्रीहेमचन्द्रसरिजी "भधातु- करण भने इत्थंभूतलक्षणमां तृतीया विभक्तिनु विधान विभक्तिवाक्यमर्थवन्नाम" से क ज सत्रथी शब्दनी करवा त्रण सूत्रोनी रचना करवामां आवी छे. ज्यारे 'नाम' संज्ञा करी छे. खरेखर ! अहीं आचार्यश्रीनु 'सिद्धहेमशब्दानुशासन'मां में त्रणे सूत्रोना विषयने सूत्ररचनाविषयक चातुर्य स्पष्ट जणाई आवे छे. अहीं क ज सूत्रमा गुथीने से विषयने सरळ बनाववामां श्रीहेमचन्द्रसूरिजीओ 'विभक्ति' शब्दनो प्रयोग | आव्यो छे. करीने 'कृदंत' भने 'तद्धितान्त' शब्दोनी पण नाम ____ पाणिनीयसूत्र सिद्धहेमसूत्र संज्ञा करी दीधी छे. सूत्रमा 'विभक्ति' नुं ग्रहण | (1) कर्तृ करणयोस्तृतीया) करवाथी 'विभक्त्यन्त' शब्दोमा नाम संज्ञानो निषेध | (2) इत्थंभूतलक्षणे हेतुक करणेत्थंभूतलक्षणे थयो. 'कृदंत' अने 'तद्धितान्त' शब्दो विभक्त्यन्त नथी | भेटले ते शब्दोने आ निषेध लागु न पडवाथी तेमनी नाम संज्ञा थई. ज्यारे पाणिनिमे सूत्रमा 'प्रत्यय' दा० (३)–'कर्तृ करणे कृता बहुलम्' मे शब्दनो प्रयोग कर्यो छे. 'कृदंत' अने 'तद्धितान्त' सूत्रमा पाणिनि 'कर्तृ' अने 'करण' से बे शब्दोन शब्दो प्रत्ययान्त होवाथी 'अप्रत्ययः' थी ते शब्दोमां ग्रहण कयु. ज्यारे श्रीहेमचन्द्रसूरिजी भेज विषयने 'प्रातिपदिक' (नाम) संज्ञानो निषेध थयो. भाथी | 'कारकं कृता से सूत्रमा केवळ कारक शब्दनु ग्रहण 'कृदंत' अने 'तद्धितान्त' शब्दोमा 'प्रातिपदिक' (नाम) | करीने टुकमां गुथी लीधो छे. (3) हेतौ 9 जुो तेमणे लखेल "माचार्य हेमचन्द्र और उनका शब्दानुशासन : मेक अध्ययन" ग्रन्थनी प्रस्तावना. पृ. 4.
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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