________________ 10] [ उपोपात श्रीहेमचन्द्रसूरिजी उपर स्थिर थई. आथी राजाभे | 'सिद्धहेमशब्दानुशासन'नी रचना करी. सिद्धहेमना आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिजीने शब्दशास्त्रनी नवरचना सूत्रोनी रचना अटली सरळ करी के सामान्य बुद्धिकरवा नम्र विनन्ति करतां जणाव्यु के | मान विद्यार्थी पण सूत्र वांचता आ व्याकरणने सहे"यशो मम तव ख्यातिः, पुण्यं च मुनिनायक !; लाईथी हृदयंगम करी शके. आमा सर्वत्र निर्दोषता विश्वलोकोपकाराय, कुरु व्याकरणं नवम्" ||1|| | पोतानु स्थान जमाव्यु. श्रीहेमचन्द्रसूरिजीओ पाणिनीय | आदि व्याकरणना आधारे सिद्धहेमनी रचना करी छे ___ आचार्यश्री विनंतीनो स्वीकार कर्यो. | से बात जेटली सत्य छे, तेटली ज से बात पण सत्य आचार्यश्रीती सूचनाथी सिद्धराज जयसिंहे पोताना | छे के श्रीहेमचन्द्रसूरिजी पाणिनीय आदिव्याकरणोनु माणसोने काश्मीरदेशमां मोकलीने सरस्वती पासेथी | केवळ अनुकरण नथी कर्य; किन्तु पोतानी दिव्य आठ व्याकरणनां पुस्तको मंगाव्या. आचार्य श्रीहेमचन्द्र-। | प्रतिभाथी तेमां अनेक प्रकारनी नवीनतानु सिंचन सूरिजीओ ते सर्व व्याकरणोनु सूक्ष्मदृष्टिले अवलोकन | | करीने तेने खूब विकसित अने रोचक बनावेल छे. करीने अक वर्षमां सवालाख श्लोक प्रमाण पंचांग | आथी ज सिद्धहेमनु निरीक्षण करीने ते काळना व्याकरण तैयार कयु. राजाना अने पोताना नामने साक्षरो मौन न रही शक्या. काक तेमना मुखजोडीने ते ग्रन्थनु नाम “सिद्धहेमशब्दानुशासन" कमलमांथी "भ्रातः संवृणु"* इत्यादि प्रशंसानी पराग राखवामां आव्यु.5 खरी पडी. सिद्धहेमनी विशेषता ___ आधुनिक विद्वानो पण तेमनी सूत्र रचनानी आचार्य श्रीहेमचन्द्रसूरिजीनेते समये प्रसिद्ध व्याकर- पटुता उपर आफरीन बनी गया छे. आचार्यश्रीनी सूत्र णोना सूक्ष्म निरीक्षणथी जणायु के कोई व्याकरणमां | रचना विषे डो० नेमिचंद्रशास्त्री लखे छ केनिरर्थक विस्तार छे,तो कोई व्याकरण कठिनताथी कलु- “हेम के पूर्ववर्ती व्याकरणोमें विस्तार काठिषित छे, कोई व्याकरण अनुवृत्तिनी बहुलताथी बेडोळ | न्य एवं क्रमभंग या अनुवृत्ति बाहुल्य ये तीन दोष छे, तो कोई व्याकरणमां क्रमभंगनी कलंकितता छे. | पाये जाते हैं; किन्तु आचार्यहेम उक्त तीनों दोषों से आथी तेमणे पोतानी प्रतिभाना बळे सर्वदोषोथी मुक्त / मुक्त है / व्याकरण में विवक्षित विषय को कम सूत्रो 卐व्याकरणनी रचना अंगे या वृत्तांत प्रबंधवितामणिमां अन्य रीते जोवामां आवे छे. व्याकरणना नव निर्माण संबंधी वृत्तांत लखता मानतुगसूरिजी जणावे छे के - सिद्धराज मालवदेश जीतीने आव्या त्यारे श्रीहेमचन्द्रसूरिजीने "भूमि कामगवि'' इत्यादि अर्थमधुर श्लोकथी राजाने आशीर्वाद प्राप्या. पाथी राजा प्रसन्न थया अने श्रीहेमचन्द्रसूरिजीनी प्रशंसा करी. केटलाक ब्राह्मणो पा प्रशंसा सहन न थवाथी बोल्या के अमारा व्याकरण आदि शास्त्रो भणीने तो विद्वान थया, प्रेमा शु आश्चर्य. पा सांभळी राजाने प्रश्नभरी दृष्टिथी श्रीहेमचन्द्रसूरिजी सन्मुख जोयु अने पूछच के प्रा ब्राह्मणो कहे छे ते साचु छ ? आचार्य बोल्या- अमे तो जैनेंद्र व्याकरणनो अभ्यास करीने छीने. महावीर भगवाने बाल्यावस्थामां इन्द्र समक्ष प्रा व्याकरणनु व्याख्यान कयु हतु. ब्राह्मणो बोल्या-या तो बहु जपुराण कालनी वातो छे. पुराणकालनी वातो ने जवा दो. हमणां नवीन व्याकरणनी सांगोपांग रचना करी शके अवो विद्वान तमारामां कोण छ ? होय तो बोलो. aa तो श्रीहेमचन्द्रसूरिजीने भावतु हतु अने वैद्ये कह्य" प्रेवु बन्यु'. पाथी तेस्रो बोल्या-जो राजा सहायक बने तो जरूर थोडा ज दिवसोमां नूतन पंचांग व्याकरणनी रचना करी आपु. राजाने सहाय आपवानी कबूलात पापी. बाद राजाने अनेक देशोमां पंडितोने मोकली अनेक व्याकरणना ग्रन्थो मंगाव्या. श्रीहेमचन्द्रसूरिजीने सर्व व्याकरणोनु अवलोकन करीने 'सिद्धहेम' नामना व्याकरणनी रचना करी. * जुत्री कुमारपालप्रबंध वगेरे.