________________ उपोद्घात ] तेमणे केटली अने कई कई वृत्तिओ रची अ विषे | "इत्यावार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां लघुवृत्तौ चतुर्थचोक्स कोई प्रमाण हाल उपलब्ध नथी. बृहद्वृत्तिनी | स्याध्यायस्य चतुर्थः पादः" से प्रमाणे पाठ छे. रचना कलिकाल सर्वज्ञ भगवंते करी छे में विषे | त्यारबाद 'कृवृत्ति'ने अंते पुष्पिकामां "इत्याबहत्तिमा ज प्रमाण मळी रहे छे. सिद्धहेमना | चार्यश्रीहेमचन्द्रविरचितायां सिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वो"सिद्धिः स्याद्वादात्" अबीजा ज सूत्रनी बृहवृत्तिमां | पज्ञशब्दानुशासनलघुवृत्ती..."थे प्रमाणे पाठ छे. "यदवोचाम स्तुतिषु" अम कहीने अन्ययोगव्यव ___त्यार बाद 'तद्धितवृत्ति'ने अंते "इत्याचार्यच्छेदिका द्वात्रिंशिकानो त्रीसमो श्लोक मूकबामां आव्यो श्रीहेमचन्द्रविरचितायां श्रीसिद्धहेमचन्द्राभिधानस्वो. छे. आ अन्ययोगव्यवच्छेदिका द्वात्रिंशिका कलिकाल सर्वज्ञ भगवंत प्रणीत छे. आथी बृहद्वृत्ति कलिकाल पज्ञशब्दानुशासनलघुवृतौ............." | ओ प्रमाणे पाठ छे. सर्वज्ञ भगवते रची छे प्रमाण सिद्ध छे. आ विषयमा आधुनिक साक्षरोनु पण औक्य छे. पण अहीं क्यांय पण आ वृत्तिनो मध्यमवृत्ति तरीके प्रस्तुत मध्यमवृत्तिना कर्ता विषे कोई चोकस प्रमा- | निर्देश करवामां नथी आव्यो; किन्तु लघुवृत्ति तरीके णना अभावे आज विद्वानोना मानस पट पर मध्यम- | ज निर्देश करवामां आव्यो छे. आथी आ वृत्ति लघुवृत्ति वृत्तिना कर्ता कोण ? अ प्रश्न अथडाई रह्यो छे. केट- | ज छे; पण मध्यमवृत्ति नथी. छतां अत्यारे जे अन्य लाकनु मानवुछे के कलिकाल सर्वज्ञ भगवंते लघुवृत्ति उपलब्ध थाय छे तेनु प्रमाण 6000 श्लोक सिद्धहेम उपर बृहद्, मध्यम अने लघु अमत्रण | छे, ज्यारे आ वृत्तिनु प्रमाण लगभग 8000 श्लोक छे. वृत्तिओ रची छे. पण आ विषयमां कोई प्राचीन *आथी आपणे आ वृत्तिने उपलब्ध लघुवृत्तिनी प्रमाण मारा जाणवामां नथी आव्यु. तेथी इच्छु छ | अपेक्षा मोटी होवाथी मध्यमवृत्ति तरीके स्वीकारी के जे भाग्यवान पासे प्रमाण होय ते प्रकाशमा लावे. तो खास हरकत न गणाय. छतां पण तेने स्वोपज्ञ सौ प्रथम विचारणीय छे के सिद्धहेम उपर कहेवी या नहि से विचार करवानी जरूर रहे छे.. मध्यमवृत्तिनी रचना थई छे के केम ? कारण के प्रस्तुत अलबत, मूल प्रतमां आ वृत्तिनो स्वोपज्ञ तरीके वृत्तिनी प्राचीन अंक ज प्रत हाल उपलब्ध थाय छे, | निर्देश करवामां आवेल छ, तेथी आपणे तेने जेम मध्यमवत्ति तरीके स्वीकारी तेम स्वोपन तरीके पण तेमां चार स्थळे वृत्तिना कर्ता आदिनो निर्देश करवामां आव्यो छे; तेमां सर्वप्रथम 'चतुष्कवृत्ति' ना अंते पुष्पि केम न स्वीकारी, से प्रश्न उठे छ; छतां'चतुष्कवृत्ति' कामां "इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचिते सिद्धहेम वगेरे चारे य वृत्तिने अंते पुष्पिकामां आ वृत्तिनो उल्लेख लघुवृत्ति तरीके ज को छे तो प्रश्न थाय के जो आ पूर्णा॥चतुष्कव्याकरणलवुवत्तिसर्वपादमेलने सर्वानं- | वास्तविक लघुवृत्ति छ अने स्वोपज्ञ छे तो शुकलिकाल .2874" प्रमाणे पाठ छे. | सर्वज्ञ भगवंते बे लघुवृत्तिओ रची ? कारण के आनाथी | नानी पूर्व प्रसिद्ध लघुवृत्ति पण स्वोपज्ञ मानवामां त्यारबाद 'आख्यातवृत्ति'ने अंते पुष्पिकामां | आवे छे. चन्द्राभि परि * व्याकरणमां 'चतुष्कवृत्ति' आदि चार वृत्तिो प्रसिद्ध छे. प्रस्तुतवृत्तिनी मूलप्रतमां ते ते वृत्तिने अंते नीचे मुजबनी ग्रन्थ श्लोक संख्या लखवामां आवी छे. चतुष्कव्याकरणलघुवृत्ति सर्वपादमेलने सर्वाग्रम् -2874 एवमाख्यातसर्वाग्रम्-१३११ कृतः सर्वपादसंख्या एवम् -660 (तद्धितस्य) अष्टपाद सर्वाङ्कमेलने एवं ग्रन्थानम्-२६७४ 7849