________________ चातुराधिकारः] मण्यमवृत्यवचूरिसंवलितम् / प्रव०-कर्ण, वसिष्ठ, अर्क, लुस, अर्कलुस, , इर, आस, मुद्गल, मौद्गल्य, सुवर्चल, प्रतर, द्रुपद, आनदुध, पाञ्चजन्य, (स्फिग् , स्फिज,) | अजिन, अभिजन, अवनत, विकुटयाङ कुश, पराशर कुलिश, आकनीकुम्भ, जित्वन् , जित्य, जैत्र, आण्डी- | इति कृशाश्वादिगणः / / 93 / / षत् , जोवन्त इति कर्णादि / 'अस्त्यर्थे, निवासे, ऋश्यादेः कः॥६।२।९४।। निवृते वार्थे वाक्ये कार्णायनिः साध्यते // 10 // म. वृ०-ऋश्यादिभ्यः 'कः' स्याचातुरर्थिको उत्करादेरीयः // 6 / 2 / 91 // देशे नाम्नि / ऋश्यकः, न्यग्रोधकः / / 94 / / म० वृ०-उत्करादिभ्य 'ईयः' स्याचातुरर्थिको देशे / उत्करीयः, सङ्करीयः // 11 // प्रव०-ऋश्य, न्यग्रोध, शर, निलीन, निवात, सित, नेद्ध, निनद्ध, (परिगूढ,) उपगूढ, उत्तर, प्रव०-उत्कर, सङ्कर,सम्पर, सम्पल, संफर, | अश्मन् , स्थूल, बाहु, स्थूलबाहु, खदिर, अनडुह, संफल, (संफुल) पिप्पल, मूल, पिप्पलमूल, अर्क, खण्डु, वीरण, कर्दम, शर्करा, निबन्ध, अशनि, भश्मन् , सुवर्ण, सुपर्ण, हिरण्यपर्ण, इडा, अजिर, खण्ड, दण्ड, वेणु, परिवृत, वेश्मन , अंशु इति इडाजिर,अग्नि, तिक, कितव, आतप, अनेक, पलाश, ऋश्यादिगणः / / 94 // एकपलाश, अनेकपलाश, अंशक, पिचुक, अश्वत्थ, वराहादेः कण् // 6 / 2 / 95 // काश, भला विशाल, शाला अरण्य, अजिन, जन्यजनक, नितान्त, वृक्ष, नितान्तंवृक्ष, आईवक्ष, इन्द्र- / म. वृ०-वराहादिभ्यश्चातुरर्थिकः 'कण' स्याद् वृक्ष, अग्निवृक्ष, मन्त्रणाई, अरीहण, वातागर, देशे। वाराहकम् , पालाशकम् / / 5 / / विजिगीषा, (संस्रव, रोहिद्गर्त, नीवापक,) अणक, अव०-वराह, पलाश, विनद्ध, निबद्ध, स्थूल, बाहु, निशात, खल, जिन, वैराणक, (अवरोहित) Aजन्य, स्थूलबाहु,................ (खदिर, विदग्ध, विजग्ध, (इन्द्रवर्म) गर्त इत्युत्करादि। Aजनीं वधू वहति-- विभग्न, विभक्त, पिनद्ध, निमग्न इति वराहादिः 'इधपद्य'० (7 / 1 / 11) इति यः ||1|| // 95 / / नडादेः कीयः // 6 / 2 / 92 / / कुमुदादेरिकः / / 6 / 2 / 96 // म० वृ०-नडादिभ्यः 'कीयः' स्याचातुरर्थिकः __ म० वृ०-कुमुदादिभ्य ‘इकः' स्याचातुरर्थिकः देशे नाम्नि / नडकीयः // 92 / / देशे / कुमुदिकम् // 16 // प्रव०-नड, प्लक्ष, बिल्व, वेणु, वेत्र, वेतस, त्रि, तक्षन , इक्षुकाष्ठ, कपोत, क्रुश्च इति नडादिगणः अव०-कुमुदान्यत्र सन्ति / एवमिक्कटिकम, // 12 // कुमुद, इक्कट, कङ्कट, सङ्कट, गर्त, निर्यास, परिकृशाश्वादेरीयण // 6 / 2 / 93 // वाप, कूप, अश्वत्थ, न्यग्रोध, बीज, दशा, शाल्मलि, म० वृ०-कृशाश्वादिभ्यश्चातुरर्थिक 'ईयण' मुनि, (स्थल,) ग्राम इति कुमुदादिगणः / / 96 / / स्याद् देशे / काश्विीयः, आरिष्टीयः / / 13 / / ' अश्वत्थादेरिकम् // 6 / 2 / 97 // म० वृ०-अश्वत्थादिभ्यश्चातुरर्थिक 'इकण' प्रव०-कृशाश्व, अरिष्ट, विशाल, रोमक, लोमक, | स्याद् देशे। आश्वस्थिकम्, कौमुदिकम् / इति चातुरोमश, शवल, कूट, पूगर, शूकर, धूकर, पूकर, | रर्थिकाधिकारः सम्पूर्णः // 9 // सन्दृश, सदृश,............ (पूरगा, पूरवा,) धून, धूम्र, विनत,अयस् ,उरस् ,सायस् , इरस् ,भरुष्य, ऐरास, | प्रव.-अश्वत्थ, कुमुद, गोमठ, रथकार, दान,