________________ 308] ....... श्रीसिद्धहेमशब्दानुशासन [अ०६ पा०२ सू० 85-90 प्रव०-सुपन्थिन् , सुवन्थिन् , सङ्काश, | स्यात् देशे / आह्नम ' / अहन , लोमन् , वेमन् , कम्पील, सुपरि, यूप, अश्मन् , अश्व, अङ्ग, नाथ, गङ्गा इत्यहरादिराकृतिगणः // 8 // (कुण्ट,) कुट, कूट, मादित, मृष्टि, आगस्त्य A, शूर, विरन्त, विकर, नासिका, प्रगदिन् , मगदिन , ____ अव० 'अहन , अह्ना निवृत्तम्= आह्रम , 'अह रादिभ्योऽत्र','अनीनादट्यह्रो०'(जा४।६६) इत्यनेन कटिद, कटिप, कटिव, चूदार,मदार, मजार, कोवि. हकारस्य अकारलोपः / अत्र 'इकण्'-पादोक्तेन दार, कश्मीर, शूरसेन, कुम्भ, सीर, सर. कसमल, 'निवृत्ते (64105) इति सूत्रेणापि इकण प्राप्नोति, अंस, नासा, रोमन् , लोमन्, तीर्थ, पुलीन, मलिन, 'अहरादिभ्यो० इत्युक्तोऽयमन चातुरथिको देशे भगस्ति, सुपथिन् , दश, नल, सकर्ण, कलिव इति सुपन्ध्यादिगणः / A 'अगपुलाभ्याम् [स्तम्भेडित् ' नाम्नि विहित इति अनेन अन्या सामान्यकाले विहितो 'निर्वृत्ते' (6 / 4 / 105) इति इकण बा(उ०३६३) इति डिद्यः] अगस्त्यः, अगम्त्यस्या ध्यते // 8 // पत्यम् 'ऋषि०'(६।१।६१) अण् / 'सुपथिन , सुपपथोऽदूरभवं-सौपन्ध्यम् , सौवन्थ्यम् , 'सुपन्ध्या सख्यादेरेयण // 6 / 2 / 88 // .. देर्व्यः', सुपथिनशब्दस्य अत एव निपातनात् म०वृ०-[सखि आदिर्यस्य]सखि इत्यादिभ्यपकारात् परो नोऽन्तः, पकारस्य विकल्पेन वकारः श्चातुरर्थिको देशे 'एयण' स्यात् / साखेयः / / 88 / / इति प्रयोगद्वयम्- सौपन्थ्यम् , सौवन्थ्यम् / / 84 // अव०- सखि, सखिदत्त, दत्त, (अग्नि) सुतङ्गमादरिन / / 6 / 2 / 85 // अग्निदत्त, (वादस्त) वायदत्त.गोफिल. भल्ल. भल्लि पाल, चक्र, चक्रवाक, छगल, अशोक, सीरक, म० वृ०-सुतङ्गमादिम्यश्चातुरर्थिक 'इन' सरक, वीर, वीरसरस, समल, रोह, तमाल, कदल, स्यात् देशे। सौतङ्गमिः, मौनिचित्तिः // 85 // करवीर, सुरस, सरम, सपूल इति सख्यादिगण: 1188 // प्रव-सुतङ्गम, मुनिचित्त, विप्रचित्त, महा पन्थ्यादेरायनण्॥६।२८९॥ चित्त, महापुत्र, शुक्र, श्वेत, विग्र, श्वन , विग्रश्वन , अर्जुन, आजिर, गदिक, बीज, वाप, बीजवाप, कर्ण म. वृ०-पन्थ्यादिभ्यश्चातुरर्थिक 'आयनण्' इति सुतङ्गमादिगणः / / 5 / / स्याद् देशनाम्नि / पान्थायनः ['नोऽपदस्य तद्धिते' (74 / 61 ) इत्यन्त्यस्वरादेर्लुक ] पथिनशब्दस्य बलादेयः / / 6 / 2 / 86 / / प्रत्यययोगे पकारात्परो नागमोऽत एव निपातनात् / / 89 // . म० वृ०-बलादिभ्यश्चातुरर्थिको 'यः' स्याद् देशे नाम्नि। [बलेन निवृत्त=]वल्यम् / / 86 / / अव०-पथिन् , पक्ष, तुष, अण्डक, वलिक, पाक, चित्र, चित्रा, (अतिश्व) कुम्भ, सीरक, लोमन् , प्रव०-बल, पुल, मुल, उल, कुल, दुल, रोमन , लोमक, हंसक, सकर्ण, (सकर्णक) सरक, नल, दल, उरल,लकुल, वन इति बलादिः ।कच्छ सहक, सरस, समल, अंशुक, कुण्ड, यमल, हस्त, प तृण खण्ड वनं जलं काननं वा (?) // 86 // हस्तिन् , सिंहक इति पन्थ्यादि / / 89 / / कणोदरायनिञ // 6 / 2 / 90 // अहरादिभ्योऽन // 6 / 2 / 87 // म. वृत्-कर्णादिभ्यश्चातुरर्थिक 'आयनिक म०७०-अहन्' इत्यादिभ्यश्चातुरर्थिकः 'अन्' / स्याद् देशे। कार्णायनिः // 10 // . . * 'कच्छ' इत्याद्यवचूरिः वृत्तिस्थं के शब्दमाश्रित्य प्रदर्शितेति न ज्ञायते /