________________ पातुराधिकारः] मध्यमत्रीपरिसंवलितम् / - -- * शिखायाः // 6 / 276 // म० वृ०-नृणादिभ्यः 'सल्' चातुरर्थिकः - म० वृ०-शिखाशब्दाद् 'वलः' स्याचातुर स्यात् , देशे। 'तृणसा / / 8 / / र्थिकः, देशे नाम्नि / पृथग्योगाडिदिति निवृत्तम् / प्रव-तृण, नद, जन, पर्ण, वर्ण, अर्णस् , शिखावलं नाम पुरम् // 76 / / अर्णशब्दोऽकारान्तोऽप्यस्ति, वरण, विल, तुस, वन, . शिरीषादिक-कणौ // 6 / 2 / 77 // पुल इति तृणादिगणः / 'तृणान्यत्र सन्ति तृणसा, म० ३०-शिरीषादिकप्रत्ययः कण् प्रत्ययश्च आप् // 8 // स्याचा तुरथिकः, देशे नाम्नि / शिरीषिकः [इक], काशादेरिलः // 6 / 2 / 82 // शैरीपकः [कण् ] ||7|| म००-काशादिभ्यश्चातुरर्थिकः ‘इलः' स्यात् , प्रव०-शिरीपवृक्षाणामदूरभवो ग्रामः शिरी | देशे / काशिलम्' |2 पिकः, शैरीषकः ||77| प्रव०-काश, वाश, अश्वत्थ, पलाश, पीयुक्षा, शर्कराया इकणीयाण च / / 6 / 2 / 78 // पाश, विश, तृण, नल, वन, नलवन, कर्दम, कपूर, म० वृ०-शर्कराशब्दान 'इकण , ईय, अण् , वर्वर, वर्तुल शीपाल, कण्टक, गुहा, कपित्थ इंति चकागत् इक ‘कण' भवन्ति, चातुरर्थिकः. देशे काशादिगणः / 'काशाः सन्त्यत्र काशिलम् / (एवम् ) नाम्नि / शर्करा अस्मिन् देशे सन्ति शार्करिकः, वाशाः सन्त्यत्र वाशिलम् // 82 // शहरीयः, शारः, शर्करिकः, शारकः [व्यादीदूतः अरीहणादेरकण् // 6 / 2 / 83 / / के' (2 / 4 / 104) इति ह्रस्वत्वम् ] ||78|| म०३०-अरीहणादिभ्योऽकण स्याचातुरोऽश्मादेः // 6 / 279 // रर्थिकः, देशनाम्नि / आरोहणकम् // 3 // म. वृक्ष-अश्मादिभ्यो 'रः' प्रत्ययश्चातुर- अव०-अरीणामी (?अरीणां) हनः, 'पूर्वर्थिकः स्याद् देशे / २अश्मरः / / 79|| पदस्था०' (2 / 3 / 64) इति णत्वम् , भरीहणा पत्र सन्ति अरोहणैर्निवृत्तम् आरोहणकम् / अरोहण, प्रव०- अश्मन् , यूष, ऊष, यूथ, मीन, खण्डु, खण्डू, द्रवण,किरण, खदिर,भगल,भलन्दन, गुद, दर्भ, कूट. गुहा, वृन्द, नग, कण्ड, गह्न, कन्द, उलुन्द, खाबरायण, खापुरायण, खानुरायण, कौष्ठापामन् इत्यस्मादिगणः / २अश्मनां निवासः // 79|| यन, कौद्रायण, भास्त्रायण, त्रैग यन, रैवत, रायप्रेक्षादेरिन् // 6 / 2 / 80 // स्पोष, विपथ, विपाश, उद्दण्ड, उदश्वन, ऐडायन, म० वृ०-प्रेक्षादिभ्य 'इन्' स्यात् , चातुरर्थिको जाम्बवत, जाम्बवत् , शिंशपा, वीरण, (धौमतायन) देशे। 'प्रेक्षी, फलकी // 8 // यज्ञदत्त, सुयज्ञ, बधिर, बिल्व,जम्यू ,(साम्बुरायण, सौशायन, सौमायन, शाण्डिल्यायन, श्वित्रायणि, प्रव०-प्रेक्षया निवृत्तम् , २फलकैर्फलवाभिः साम्बरायण,) कश, सुशर्मन् इति भरीइणादि(वा) निवृत्तमिति वाक्यम्, तत इन् / प्रेक्षा, फलका, गणः / / 83 // बन्धुका, ध्रुवका, धुवका, क्षिपका, कूप, सुक, सुपन्थ्यादेयः // 6 / 2 / 84 // [धुक, पुक, इकट, कङ्कट, सङ्कट, मह, गत्ते, न्य- म० वृ०-सुपन्थिन इत्यादिभ्यो 'व्यः' स्यात्, प्रोध, परिवार, हिरण्य इति प्रेक्षादि / / 8 / / चातुरर्थिकः, देशे नाम्नि। सौपन्थ्यम् , साला तृणादेः सल / / 6 / 2 / 81 // श्यम् , काम्पील्यम् / / 84 //