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________________ ************************** * ** *** * 7x+ ___ दरेक मनुष्यो मृत्यु लोकमांथी विदाय थवानी / प्रभुनी पूजा-स्तुति आदि करी नजीकना उपाश्रयमां चिठ्ठी साथे ज लईने आवे छे. आथी जन्मेला दरेक | बिराजमान गुरुने वंदन करवा आवी. भा समये त्यां मनुष्यो चिठ्ठीमां मुकरर करेल समय आवतां मनुष्य- | चांद्रगच्छना आचार्य श्रीदेवचन्द्रसूरिजी संयमनी लोकमांथी विदाय ले छे. पण "परोपकाराय सतां | सुवास फेलावी रह्या हता. भ्रमरगण जेम पुष्पनी विभूतथ:" निथमने चरितार्थ करनारा संत पुरुषोनो | सुवासथी आकर्षाय तेम श्रावकवर्ग आ. श्रीदेवचन्द्रसूरिआत्मा मनुष्य लोकमांथी विदाय थवा छतां | जीनी संयमसुवासथी आकर्षातो हतो. सती पाहिनी पोताना परोपकारादि गुणोथी तथा तेनाथी उत्पन्न | आचार्यश्रीने वंदन करी स्वप्ननी बीना जणावी. थयेली कीर्तिथी अहीं ज रहे छे. भारत देशना | आचार्यश्री जणाव्यु के तने क पुत्रनी प्राप्ति जुदा जुदा देशोनी धरती. माता आवा दिव्यांशी संत थशे. आ पुत्र महान शासन प्रभावक थशे. आ पुत्र पुरुषोनी उत्पत्तिनी खाण छे. भारतना जुदा जुदा भेटलेदेशोनी धरती माता अनेक युगवीर प्रतापी पुरुषोने जैन शासननु अमूल्य चिंतामणि रत्न ! जन्म आप्यो छे. आमां गुजरातनी धरती माताओं पण जैन शासन महेलनो समर्थ दिव्य स्तंभ ! जरा य कमीना नथी राखी. आ गुर्जरभूमिमां धंधुका आर्य संस्कृतिने प्रकाशित करनारो गुजरातनो मगर पोतानी संस्कृतिथी मशहूर हतु. महापुरुषोना झळहळतो दीपक ! आशीर्वाद लेवानां तेना सुन्दर सौभाग्य सर्जायेला आ सांभळी पाहिनीना बदन उपर हर्ष हता. ते नगरमा चाचिंग श्रेष्ठी अने तेनी पत्नी पाहिनी छवायो. पोताना पुत्रनो उत्कर्ष सांभळीने कयी माताने पोताना जीवन उपवनने आर्य संस्कृति अने सदाचारथी | आनन्द न थाय ? सुवासित बनावी रह्या हता. चाचिंग शिवधर्माव . विक्रम संवत् 1145 नी कार्तिकपूर्णिमानी लम्बी हतो, ज्यारे पाहिनी जैन धर्मनु शरणु | रात हती. चन्द्र रूपेरी अजवाळां ढोळी रह्यो हतो. स्वीकार्यु हतु. छतां तेमना दाम्पत्य जीवननी नौका चोमेर शान्ति प्रसरेली हती. आ समये पाहिनी से कोई पण प्रकारनी अथडामण विना संसार समुद्रमां - एक पुत्र रत्नने जन्म आप्यो. तेनु नाम चांगदेव पसार थई रही हती. जैन इतिहास कहे छे के पूर्वे | भूप राखवामां आव्यु. जोत जोतामां ते बाळकना आवां अनेक कुटुम्बो विद्यमान हता के जेमां पति दूधीया दांत गया भने आव्या मजबूत दांत. पाहिनी पत्नीनो धर्म अलग हतो, छतां जीवनमां कोई पण | तेना शरीरनु पालन पोषण करवा साथे आर्य जातनो विरोध खडो थतो न हतो. संस्कृति भने सदाचारथी तेना आत्मानु पण पालन श्रीहेमचन्द्रसरिजीनो जन्म पोषण करीने स्वइतिकर्तव्यतानु पालन करी रही हती. श्रेक वखत पाहिनीने रात्रे स्वप्नमां चिंतामणि | अन्यदा पाहिनी ते बाळकने साथे लईने रत्ननी प्राप्ति थई, तेणे ते चिन्तामणिरत्न परम मंदिरमां देवाधिदेवना दर्शन करवा भावी. पाहिनी . भक्तिथी गुरुना चरणे धरी दी. सवार थतां मंदिरमा प्रदक्षिणा मापीने स्तुति करवामां तत्पर बनी, साहिनी पोताना रोजना कार्यक्रम मुजब जिनालयमां / तेवामां आ चांगदेव नजीकना उपाश्रयमां खाली पड़ेल
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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