________________ [ उपोद्घात अक आसन उपर वेसी गयो. आ आसन जेमनाथी / छे. प्रभावकचरित्र, प्रबंधकोश, प्रबंधचिंतामणि वगेरें आ बाळकनी जीवन ज्योत प्रगटवानी छे ते आचार्य | ग्रन्थोमां आ वृत्तान्त ओछा-वता फेरफार साथे जोवामां श्रीदेवचन्द्रसूरिजी महाराजनु हतु. आचार्य महाराजे | आवे छे. उपाश्रयमा आवतां ज पोताना आसन पर बेठेल आ कुमारपाल चरित्रमा "देवचन्द्रसरिजी माता चांगदेवने जोयो. तेमणे आ दृश्य वंदन करवा | पिता उभयनी संमतिथी चांगदेवने खंभात लई गया आवेल सती पाहिनीने बताव्यं अने पूर्वे आवेल स्वप्ननु | भने वि० सं० 1154 मां प्रव्रज्या प्रदान करी" श्रेम स्मरण करावीने आ पुत्र रत्ननी मागणी करी. | जणाववामां आव्यु छे, ज्यारे प्रभावक चरित्रमा पाहिनीना रगे रगमा देव गुरु उपरना प्रेमनो झरो | "देवचन्द्रसूरिजी बाळकना पिता परदेश होवाथी केवल वहेतो हतो. ते त्याग मार्गनी महत्ता समजती हती. | मातानी अनुमतिथी चांगदेवने खंभात लई गया अने आथी तेणे प्रसन्न थईने पुत्रने आपवानी पोतानी | वि० सं० 1150 मां दीक्षा आपी” प्रेम बताववामां संमति जणावतां कह्य के हे गुरुदेव ! मारी कुक्षि | आव्यु छे. उत्पन्न थयेल पुत्र भगवान महावीरे बतावेल त्यागना | प्रबंधकोशना कर्ता श्रीराजशेखरसूरिजी आ. मार्गे जईने जैन शासननी जयपताका फरकावे सेवा प्रसंगने जुदी ज रीते बतावे छे. श्रीहेमचन्द्रसूरिजीना मारा अहोभाग्य क्याथी ! हु आ पुत्ररत्न आपवा दीक्षाप्रसंगर्नु वर्णन करतां तेओ जणावे छे के-अक वख्त तैयार छ. पण एक संतान उपर माता पिता बनेनी श्रीदेवचंद्रसूरिजी विहार करतां करतां धंधुकामां आव्या, समान मालिकी होय छे. आथी तेना पितानी पण त्यां व्याख्यान कयु. व्याख्यानना अंते नेमिनाग अनुमति मेळववानी जरूर छे. आथी श्रीदेवचन्द्र- नामनो श्रावक उभो थईने आचार्य महाराजने कहे सूरिजी चांगदेवना पिता चाचिंगने तेनी प्रव्रज्याथी छे के आ चांगदेवनामना मारा भाणेजनु अंतःकरण भविष्यमा थनारा लाभो समजावीने तेनी पासेथी आपनी वैराग्यमय देशना सांभळीने वैराग्यवासित पण अनुमति लीधी. बन्युछे. अथी से प्रव्रज्या लेवानी मागणी करे छे. ज्यारे आम माता पिता उभयनी अनुमतिथी तेओ | आ गर्भमा हतो त्यारे मारी बहेने र बहेने रात्रे स्वप्नमां अक आ बाळकने साथे लईने खंभात आव्या. त्यां विक्रम | सुन्दर आम्रवृक्ष जोयु, अन्यस्थाने रोपवाथी ते संवत् 1154 मां महा शुद चतुर्दशीने शनिवारना | अतिशय फलवान बन्यु. गुरु आ स्वप्ननु फल बताशुभमुहूर्ते प्रव्रज्या आपी. चाचिंग अने पाहिनीना वतां जणाव्यु के आ बाळक अन्य स्थळे रहेवाथी लाडिला चांगदेव आजथी आचार्य श्रीदेवचन्द्रसरि- अत्यंत दीपशे, प्रवरगुणोनुभाजन बनशे. आ बाळक 'जीना शिष्य सोमचन्द्र मुनि बनी गया. सुलक्षणवालो छे अने दीक्षाने योग्य छ, तेथी तेने कोटि कोटि प्रणाम हो सोमचन्द्र मुनिने !!! दीक्षा आपवी जोई;पण माता पितानी अनुज्ञा जोई. आथी नेमिनाग चांगदेवनी साथे तेना माता पिता धन्य छे तेमना माता पिताने !!! अने पासे आव्यो अने चांगदेवनी प्रव्रज्या लेवानी पवित्र धन्य छ जैन शासनने !!! भावना व्यक्त करी. माता पिता प्रव्रज्या लेवानो जेना प्रभावे नवकिसलयसमा कोमल अने निषेध कर्यो. तेमने खूब समजाववामां आव्या. कलैया कुवर जेवा बालकुमारो पण संपत्तिने रझळती. प्रत्रज्याग्रहणथी थनार भविष्यनो लाभ बताववामां मूकीने, स्वजन परिवारनो त्याग करीने, स्व-परना आव्यो. पण मोहनी प्रकृष्टताथी अनुमति न ज आपी. कल्याण माटे प्रभु महावीरनो भेख स्वीकारवा तैयार | आथी माता पितानी अनुज्ञा विना चांगदेवे चारित्रनो . स्वीकार कर्यो. आ प्रसंगमा मतांतरो / प्रबंधचिंतामणिमां आ प्रसंगनु वर्णन ... आ प्रसंग "कुमारपाल चरित्र" ने आधारे लखेल | .. आ प्रसंग प्रबन्धचिन्तामणि ग्रन्थमा घणाज थाय छे.