________________ [ संपादकीय वक्तव्य विना रहेती नथी. आ वखते हु मारा अंतरात्माने | पोताना अमूल्य समयनो भोग आपीने मने घणी पूछुछु के तुम उपकारनो बदलो वाळी शकीश ? | ज मदद करी छे. तेमना अनेक उपकारो साथे आ त्यारे अंतरात्मामांथी स्पष्ट ध्वनि नीकळे छे के नहि | उपकार पण चिरस्मरणीय रहेशे. नहि, हरगीझ नहीं. . स्व०पू०आचार्यश्री क्षमाभद्रसूरिजी म. ना जीवन __ अत्रे मने ग कार्यमां अनेक रीते मदद | प्रसंगो आलेखवामां, हैमप्रकाश पूर्वार्धमां तेमणे लखेल करनार प० पू० गुरुदेवश्री (पू. मु. श्रीललित- 'सम्पादकीय निवेदन' नी तथा पू० श्रीश्रमी वि०म०ना शेखर वि० म०) ने हुँ' केम भूली शकु? योगो- 'जीवन चरित्र'नी, हैमप्रकाश उत्तरार्धमा प्रशान्तमूर्ति द्वहन आदि अनेक कार्योमा पोतानो समय पं० श्रीकनकविजयजी महाराजे आलेखेल स्व० पू० श्री व्यतीत थतो होवाथी समय न होवा छतां मारी क्षमाभद्रसूरिम. नु जीवन चरित्र' वगेरेनी सहाय विनंतीने स्वीकारीने तेमणे शुद्धि-पत्रक वगैरे माटे | मळी छे. आथी अत्रे हु तेओनो आभार मानुछु. पिरबाड़ा श्रावण शुद पूर्णिमा. -मुनि राजशेखरविजय FOREn