________________ [3 संपादकीय वक्तव्य काउंसमा प्रश्नार्थचिह्न पूर्वक शुद्ध पाठ राखवामां आवे | वे सुसंभवित छे. प्रेस कोपीमां अनेक स्थळे मूल तो वांचनारने घणी ज कठिनता पड़े, वांचवामां समय प्रतना पाठो लखवा रही गया हता, लक्ष्यमा आवतां घणो व्यतीत थाय, अने परिणामे वांचनमा कंटाळो | ते पाठो प्रेसकोपीमा लई लेवामां आव्या छे, छतां पण आवे. कारण के आवी सामान्य अशुद्धिओ तो अक | | क्वचित् रही गयेला पाठो लक्ष्यमां न आव्या अक पादमां सेंकडो आवे छे. .. होय अने अथी तेमनु मुद्रण न थयु होय पण सहज | छे. विषयोनी स्पषता माटे अथवा. पाठनी अशद्धि __आ सावचूरि मध्यमवृत्तिनी मूल प्रतमां अनेक आदिना कारणे अनेक स्थळे टीप्पण करेल छे; स्थळे अवचूरिना पाठो खण्डित बताववामां आव्या छ, आ टोप्पणोमां अनुपयोग आदिना कारणे कोई स्थळे से उपरथी जणाय छे के आ मल प्रत पण अन्य कोई | . . | क्षति थई जाय से असंभवित न ज गणाय. आथी प्रतना आधारे लखवामां आवी हशे, जे अन्य प्रतना | टीप्पण आदिमां कोई ठेकाणे क्षति थई गई होय सोमन ई गई रोग आधारे आ मूल प्रत लखाई हशे ते प्रत कालना प्रभाव अथवा अशुद्ध संशोधन थई गयु होय से बदल या अन्य कोई कारणथी अनेक स्थळे फाटी गई हशे ह त्रिविध क्षमा याचुछु अने आवा स्थळे वाचक अथवा अक्षरो भूसाई गया.हशे, अम आ मूल प्रतमां...| सज्जन महाशयो पोताना दिलने गंभीर बनावशे ."प्रमाणे दर्शाववामां आवेल खाली जग्या उपरथी क्षेत्री आशा रावु छु. अनुमान थाय छे. संशोधनमापण ते स्थळो प्रायः तेवाने तेवा बताववामां आव्या छे. तथा बृहवृत्ति आदिना कारण? . आधारथी या अनुमानथी ते ते स्थळे जे पाठ होवो गच्छतः स्खलनं क्वापि, भवत्येव प्रमादतः; जोई ते पाठ ब्रकेटमां बतावषामां आवेल छे. आवा हसन्ति दुर्जनास्तत्र, समादधति सज्जनाः / त्रुटित स्थळोमां ज्यां बृहद्वृत्ति आदिना आधारथी या आ कार्यमा मने बिलकुल अनुभव न हतो, अनुमानथी कयो पाठ होवो जोई श्रेबो निर्णय न थई मासमां आ कार्य करवानी जरा पण गुंजायश न हती, शक्यो त्यां केवल..................... आ प्रमाणे त्रुटित | छतां केवळ पूज्योनी कृपादृष्टि उपर ज श्रद्धा राखीने स्थळो बताववामां आवेला छे. आवा स्थळोमा क्वचित् | आ कार्य करवा में साहस कयु. आथी आ कार्यमां क्वचित् काउंसमा प्रश्नार्थ चिह्न पण मूकेल छे. मने यत्किंचित् जे सफलता प्राप्त थई छे, तेनो यश * अहों बहुधा वृत्तिना ते ते पदनी या वाक्यनी मने नहि, किन्तु जेमना नयनोमांथी सदा वात्सल्यनु अवचूरि,वृत्तिना ते ते पदना या वाक्यना प्रतीक लीधा | वारि वही रह्य छे ते मारी जीवननौकाना कर्णधार, विना करवामां आवी छे. आथी आ अवचूरि वृत्तिना | सिद्धान्तमहोदधि सूरिपुरंदर श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वकया पदनी या वाक्यनी छे ते शीघ्र ख्यालमा नथी | रजी महाराजने तथा निरीहतानीरधि परमगुरुदेव आवतु. आथी अहीं अभ्यासीओनी सुगमता माटे | पंन्यासप्रवर श्रीहेमंतविजयजी गरिणवर्यने छे. आ ते ते अवचूरि वृत्तिना कया पदनी या वाक्यनी छे श्रे| कार्यनो प्रारंभ पूज्य आचार्य भगवंतना आशीर्वादथी थयो दर्शाधवा वृत्तिमा भने अवचूरिमां' 2 3 4 वगेरे अंक | अने तेनी शीघ्र पूर्णाहुति थई पूज्य परमगुरुदेवश्रीनी मूकवामां आव्या छे. वृत्तिमा जे पद पासे 1 अंक छे | कृपादृष्टिथी. परमगुरुदेवश्रीओ मारी साथे पोताना तेनी अवचूरि, अवचूरिमांज्यां 1 अंक मूकवामां आवेल | सेवाभावी मुनिपुंगवोने राखीने पिंडवाडामां स्थिरता छे त्यांथी शरू थाय छे. अज प्रमाणे 2 3 4 वगेरे करवाना अनुकूळता करी आपी अथी ज आ कार्य हु अंको माटे जाणवु. शीघ्रताथी पूर्ण करी शक्यो छु संशोधन कार्य अत्यन्त काळजीथी अने शान्तिथी ज्यारे हुअज्ञानना अंधकारमा अथडाता मारा करवामां आवेल छे, छतां अशुद्धि बाहुल्यना कारणे पूर्व जीवननी साथे अत्यारना जीवननी तुलना करूं कोई कोई अशुद्धिओ तदवस्थ रही जवा पामी होय | छु', त्यारे आ पूज्योना अनहद उपकारनी स्मृति थया