________________ गई. 2] [संपादकीय वक्तव्य प्रेसनु कार्य चालु न थयु. हवे आ कार्य क्यारे पूर्ण / तेमां ज्यां लखनारनी स्खलनाथी अशुद्ध लखायु हतु थशे अनी कल्पना पण थई शकती न हती. आथी के पाठ लखवोरही गयो हतो त्यां ते सर्व प्रेस कोपीमां मारा मनोगगन पर निराशानी काळी वादळीओ फेलाई | सुधारी लीधु'. पण ज्यां फोटो कोपी अशुद्ध होवाना कारणे प्रेस-कोपीमां अशुद्धि हती त्यां में बृहवृत्ति, निराशानी वादळीओ वर्षवानी तैयारी हती हैमप्रकाश वगेरेनो आश्रय लीधो. ज्यारे बृहद्वृत्ति तेवामां घणां समय पहेला मारी डायरीमा नोंधायेल के हैमप्रकाश वगेरेथी पण स्पष्टता न जणाई त्यारे श्लोक याद आव्यो. आ रह्यो ते श्लोक 'काशिका' अने सिद्धान्तकौमुदी' नो आश्रय लीधो. आ प्रमाणे ज्यां अशुद्धि जणाई त्यां अनेक ग्रन्थो जोया प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचैः, बाद अवचूरिनो पाठ अशुद्ध छे अने अमुक पाठ शुद्ध छे प्रारभ्य विघ्नविहता विरमन्ति मध्याः; अवो चोक्कस निर्णय थया बाद अशुद्ध पाठनी आगळ विनैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः, ब्रकेट (काउंस) मा प्रश्नार्थ चिह्न साथे मने जे पाठ प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति // 1 // शुद्ध जणायो ते पाठ मूकेल छे. आथी मने फरी पुरुपार्थने अजमाववानी प्रेरणा मळी. में करुणाना कंद परमाराध्यपाद आचार्य में संशोधन पद्धतिने अन्याय न थई जाय तेनी भगवंतने आ कार्यने लक्ष्यमां लेवा विनंती करी. | संपूर्ण काळजी राखी छ.छतां में आटली तो छट राखी ज तेओश्रीधे आ अंगे घटतां सर्व प्रयत्नो कर्या. आखरे छ के-ज्यां भवति, पचति,चैत्रः जेवा प्रसिद्ध प्रयोगोमां 1921 ना प्रारंभमां व्याकरणनु मुद्रण कार्य पिंडवाड़ाना | 'ति' ने बदले 'पि' होय 'च' ने बदले 'ज' होय "ज्ञानोदय प्रिन्टींग प्रेस" मां शरू थयु. आथी | | 'चैत्रः' ने बदले 'चैत्र' होय, तथा ते पाठो बृहद्वृत्ति पुनः आशाना समीरण वाया अने मनोगगन पर | वगेरे अनेक ग्रन्थोमां शुद्ध मळता होय तेवा स्थळोमां फेलायेली निराशानी काळी वादळीओ अणवर्षी दूर | शुद्ध पाठ काउंसमा न मूकतां अशुद्ध पाठने ज शुद्ध दूर क्यांय पलायन थई गई. स्थगित बनेली संशो- | करेल छे. दा० त०-७३।५।। सूत्रनी अवचूरिमां धननी प्रवृत्तिने पुनः चालु करी. मूलप्रत मां “सवत्सेत्युक्ते तु सह वत्सेन वत्सया वा स्व० आचार्य श्रीनीतिसूरिजी म० पासेथी 'वर्तन्ते अवो बहुवचनमा प्रयोग अशुद्ध छे. कारण 'वर्तन्ते इति संशयः स्यात्' प्रमाणे पाठ.छे, अहीं आ सावरि मध्यमवृत्तिनी प्राचीन अक प्रत स्व० पू० के सवत्सा प्रयोग अकवचनमा छे अटले तेनो विग्रह आचार्य श्रीक्षमाभद्रसूरिजी म० ने प्राप्त थई हती. | | पण अक वचनमा थाय. तथा लघुन्यास आदिमां भा तेमणे से प्रत अति जीर्ण होवाथी तेनी क फोटो | | स्थळे 'वर्तते' अवो शुद्ध प्रयोग छे. आथी आ स्थळे कोपी तैयार करावी. आ फोटो-कोपीना आधारे | 'वर्तते' प्रयोग काउंसमां न राखतां 'वर्तन्ते' ने स्थाने तेमणे प्रेस-कोपी तैयार करावी हती. पण मूल | ज 'वर्तते' अवो शुद्ध पाठ राखवामां आवेल छे. प्रतमां अशुद्धिओ घणी होवाथी आ प्रेस-कोपी घणी ज अशुद्ध हती. तथा प्रेस-कोपी लखनारनी स्खलनाथी अज सूत्रनी अवचूरिमां "गौतमोऽयं पण घणे ठेकाणे पाठो लखवाना रही गया हता. आ सुलक्षणः शकटं सीरं च वहति" अ प्रमाणे पाठ छे, प्रतमां मध्यमवृत्ति लगभग शुद्ध हती, पण अवचूरि अहीं 'गौतमोऽयं' अवो पाठ अशुद्ध छे, 'गोतमोऽयं' घणी ज अशुद्ध हती. आथी में अवचूरिनी अन्य प्रन पाठ शुद्ध छे. कारण के मूलशब्द 'गो' छे. तथा मेळववा माटे पूना 'भांडारकर इन्स्टीट्य ट' वगेरे बृहद्वृत्ति आदि अन्य ग्रन्थोमां 'गोतमोऽयं' अवो अनेक स्थळोवे तपास करावी. पण तेमां मने सफळता शुद्ध पाठ छे. आथी आ स्थळे पण 'गौतमोऽयं ने मळी नहीं. प्रेस कोपीमां ज्या ज्यां अशुद्धि जणाई त्यां स्थाने 'गोतमोऽयं पाठ राखवामां आवेल छे. जो त्यां प्रथम फोटो-कोपीनी साथे अप्रेस कोपी मेळवी. | आवी अशद्धिओने पण तेमने तेम राखवामां आवे अने