________________ 4. सम्पादकीय वक्तव्य . वर्षा ऋतुना दिवसो काचींडानी जेम घडी घडीमां | सागर प० पू० आआचार्य भगवंतना वचन चीले चालीने पोतानु स्वरूप बदली रह्या हता. हुं पिंडवाडानी | अनेक जीवो सिद्धिना शिखरो सर कर्या छे. विशाळ धर्मशालाना अक नानकडा होलमां अकलो | बुद्धि अने बळने संसारमा खर्चीने आवेला वृद्ध मुनिबेठो हतो. चोमेर शान्ति पथरायेली हती. माझं मन | पुंगवो) अमना वचनने अनुसरीने नव जवान "सादृश्यमपि न पदार्थान्तरं किन्तु"... इत्यादि साधुओने शरमावे तेवी बुद्धि अने बळनु पुनित न्याय मिक्तावली नी पंक्तिओनी साथे रमी रह्य हत्. | प्रभात खीलव्यु'. तो पछी शा माटे तु निष्फळताना तेटलामां अकाओक ओक मुनिराजना शब्दो काने अथ- | विचारना अंधकारमा अथडाय छे ? डाया-पू० आचार्य भगवंत तमने बोलावे छे. हुं तुरत ऊठीने पू०आचार्य भगवंत पासे गयो. मत्थअण........ आथी में पू० आचार्य भगवंतनी आज्ञाथी हुँ सम्पूर्ण बोली रह से पहेलांज पोताना हाथमां | आ काये मारा शिरे लई लीधु. मेज चातुर्मासमां रहेला सावचूरि मध्यमवृत्तिनी प्रेसकोपीना केट | सावचूरि मध्यमवृत्तिना संशोधनना श्रीगणेश मंडाई लाक पाना मने आपवा हाथ लम्बावतां पूज्य आचार्य गया. मे शुभ चातुर्मास हतु वि० सं० 2018 नु. भगवंते जणाव्यु के "तारे आ सावचूरि मध्यमवृत्तिना 2019 नी शरूआतमां ब्यावर (राज.) सावचूरि अन्थनु सम्पादन-संशोधन करवानु छे”. आ मध्यमवृत्तिनु मुद्रण शरू थयु. से सालमा सांभळी मारा मने विचारना सागरमा डूबकी | मारं चातुर्मास पूज्य आचार्य भगवंत साथे जावाल मारी. मारुं मन विचारी रह्य के सम्पादन संशोधननो (राजस्थान) मां थयु. आ चातुर्मासमां पण प्रेस बिलकुल अनुभव नहीं, स्वास्थ्यनी अनुकूलता कोपीन संशोधन चालु ज हतु. लगभग बार महीनामां व्याकरणनु मुद्रण कार्य पूर्ण थशे मेवी मारी नहीं ........................... धारणा हती. पण संयोगोनी सांकळमां संकळायेला मारु मन विचारना सागरमांथी बहार नीकळे | मनुष्योनी बधी ज धारणाओ क्यां सफळ थाय छे. से पहेलां ज आचार्य भगवंत बोल्या-मां शुमारी आ धारणा निष्फळ बनी. प्रेसनु कार्य धीमे विचार करे छे ? तें व्याकरण कयु छे अटले | धीमे मन्द थतुगयु अने 2020 नी शरूआतथी ज आ तुआ कार्य खुशीथी करी शकीश''. पू. आचार्य भग- | कार्य सर्वथा बंध थई गयु. प्रेसनु कार्य आगळ चाले वंतना आ वचनोमां सफळता गुजती हती. अमना | ओ माटे घणो प्रयत्न थवा छतां कार्य आगळ न चाल्यु. आ वचनोसे मारा आत्मामां सुषुप्त एक शक्तिने | पुरुषार्थथी पलटावी न शकाय अवा आ समयने में जाग्रत बनावी. ढीला पडेला मनने पुरुषार्थनी पग- | प्रारब्धनी पहेरामणी समजी वधावी लीधो. प्रेसन दंडीये चडायवा अन्तरात्मामांथी अकाक नाद उठ्यो- | कार्य स्थगित थवाथी में प्रेस कोपीन संशोधन शुतने आ वचन उपर श्रद्धा नथी ? शुतें प्रत्यक्ष | करवानी प्रवृत्ति पण स्थगित करी दीधी. प्रसनु कार्य जोयु ने अनुभव्यं नथी के करुणाना विराटकाय | चालु करवा पुनः पुन: अनेक प्रयत्नो थवा छतां