________________ अल्पप्रत्ययविधानम्] मध्यमवृत्त्यवचूरिसंवलितम् / म० वृ०-अनुपसर्गाद् = उपसर्गरहितात् ] | प्रतिबन्ध इत्यर्थः / वर्षविघ्न इति किम् ? २अवह्वयतेः 'अल् वाशब्द उ:' स्यात् / भावे-, हवः' / / ग्रहोऽर्थस्य // 50 // भाष इति किम् ? कर्मणि ह्वायः॥४५॥ 'अव०-'विहन्यते कार्यमनेन इति विघ्नः, अ३०-ह्वानमिति वाक्यम्। भावेऽनुपसर्गाद्' / 'स्थादिभ्यः कः' (5 / 3 / 82 इति कप्रत्ययः), वर्षस्य इति, अकर्त्तरि कर्मादिकारकस्यानुप्रवेशो मा भूदिति / विघ्ने, कोऽर्थः ? वृष्टिप्रतिबन्धेऽर्थे / अर्थस्य भावग्रहणम् / / 45 / / पदार्थस्य कुम्भस्तम्भादेः सामान्यग्रहणात्मकं ज्ञानहनो वा वध् च / / 5 / 3 / 46 // मवग्रह उच्यते // 50 // म० वृ०-अनुपसर्गाद्धन्तेर्भावे 'अल वा, त- . प्रादु रश्मितुलासूत्रे // 5/6 / 51 // द्योगे हनो वध् च' / हननं वधः, पक्षे घातः // 46 // म० वृ०-प्रपूर्वाद् ग्रहे रश्मौ तुलासूत्रे चार्थे 'भल् वा' भावाकों: स्यात् / प्रगृह्यते इति प्रग्रहः प्रमाहः, सम०-अनुपसर्गादिति किम् ? संघातः // 46 // अन्यस्तु प्रग्रहः // 51 // व्यध-जप-मदभ्यः / / 5 / 3 / 47|| म० वृ०-एभ्योऽनुपसर्गेभ्यो 'भाषाकोरल' प्रव०- अश्वादेः संयमनरज्जुः बन्धनोपकस्यात् / बहुवचनाद् भावे इति ।निवृत्तम्। व्यधः, रणमथवा तुलासूत्रं प्रग्रहः प्रबाह इत्युच्यते // 51 / / जपः, मदः // 47 // . घृगो वस्त्रे // 5 // 3 // 52 // अव०-अनुपसर्गादित्येव-- आव्याधः, उपजापः, म००-अपूर्वाद् वृणोतेर्वस्त्रविशेषेऽर्थेभावा- उन्मादः // 47 // कों 'रल' वा स्यात् / (प्रवृण्वन्ति तमति) प्रवरः, प्रावारः / वस्त्र इति किम् ? प्रवरो याति // 52 // नवा क्वण यम-हस-स्वनः // 5 // 3 // 48 // प्रव०-'प्रावार' इत्यत्र यत्र , 'घन्युपर्गस्य बहुलम्' म० वृ०--एभ्योऽनुपसर्गेभ्यो 'भावाकोरल् (3 / 2 / 86) इति सूत्रेण दीर्घः कार्यः // 52 // वा' स्यात् / कणः, काणः; यमः, यामः; हसः, हासः; .. उदः श्रेः / / 5 / 3 / 53 // स्वनः, स्वानः / अनुपसर्गादित्येव- प्रकाणः,प्रयामः, प्रहासः, विष्वाणः / अप्राप्तविभाषेयम् // 48 // म० वृ०-उत्पूर्वात् श्रेः 'अल् वा' भावाकोंः स्यात् / नित्यमलि प्राप्ते विकल्पोऽयम् ]उच्छयः,उच्छायः। आडो रुप्लोः // 5 // 3 // 49 // // 53 // म० वृ०--आज पराभ्यां रुप्लुभ्यां भावाकों यु-पू-द्रोर्घन // 5 // 3 // 54 // 'रल वा' स्यात् / आरवः, आरावः ; आप्लवः, आप्लावः / आर इति किम् ? विरावः, विप्लावः // 49 // / ___म. वृ०-वेति निवृत्तं पृथग्योगात्' / उत्पूर्वप्रव०-रौतिधातोपनि प्राप्ते प्लुधातोश्चालि भ्यो युपू द्रुभ्यो भावाकोंर्घम्' स्यात् ।भलोऽपवादः। नित्यं प्राप्ते 'आलो रुप्लोः इति विकल्पार्थ वच उद्यावः, उत्पावः, उद्मावः // 54 // नम // 49 // प्रव०-'युपूद्रोर्घम्' इत्यत भारभ्य 'माने' वर्षविघ्नेऽवाद् ग्रहः // 5 // 3 // 50 // (5 / 3 / 81) इत्यन्तं यावत् द्वितीयोऽयंघमोऽधिकारः। म० वृ०--अवपूर्वात् प्रहेर्षिविघ्ने' वाच्ये / अत्र घधिकारे सूत्राणि 28 ज्ञातव्यानि / 'पूर्वसू'भाषाकों- 'वोऽल्' स्यात् / अवग्रहः,अवग्राहः वृष्टेः; / त्रेण सह (अविधानात् ) // 54 //