________________ 184 कलिकालसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्राचार्यविरचिते मध्यमवृत्त्यवरिभ्यामलङ्कृते गौरादेर्गणान्मुख्यात् स्त्रियां डीः स्यात् / मुख्यादित्यधिकारोऽयम् / गौरी / मुख्यादिति किम् ? बहुनदा भूमिः // 19 // ___ अ० गौर / शबल / कल्माष / सारङ्ग / पिशङ्ग / हरिण / पाण्डर / अमर / सुन्दर / विकल / निष्कल पुष्कल / गौरादीनां गुणवचनत्वेनाजातिवाचित्वादप्राप्ते पाठः / / दास / चेट / विट / भिक्षुक / बन्धक / पुत्र गायत्र / आनन्द / टेट / कटेट / नट / एषामजातिवाचित्वादप्राप्ते पाठः / / काव्य / शैव्य / मत्स्य / मनुष्य मुकय / हय / गवय / ऋश्य / द्रुण / ओकण / एषां जातिवाचित्वेऽपि यान्तत्वात् द्रुणओकणयोर्नित्यस्त्रीविषयत्वादप्राप्ते पाठः / / भौरिकि / भौलिकि / भौलिङ्गि / औद्गाहमाति / आलम्बि / आलच्चि / कालच्चि / सौधर्म / आयस्थूण आरद / तथा दोटी / वरट / नाट / पाट / सृपाट / मूलाट / पेट / पट / पटल / पुट / कुट / फाण्टश घातक / केतक / तर्कर / शर्कार / बदर / कुवल / लवण / बिल्व / आमलक / मालत / वेतस / अतस आढक / कदर / कदल / गुडूच / बाकुच / नाच / कुम्भ / कुसुम्भ / यूष / मेष / सूष / मूष / करीर / शल्लक वल्लक / मल्लक / मालक / मेथ / हरीतक / कोशातक / पिप्पल / शम / तम / शृङ्ग / भृङ्ग / बिम्ब / बर्बर सुषव पाण्ड / लोहाण्ड / पिण्ड / मण्ड / मण्डर / मण्डल / यूप / सूप / शूर्प / सूर्म / मठ / पिठर / कुर्द गूर्द / सूर्द / खार / काकण / द्रोण / अरीहण / ओकण / वृस / आसन्द / अलन्द / कन्दल / सलन्द / देह देहल / शष्कुल / शव / सूव / मञ्जर / शङ्कुलि सूचिशब्दोऽपि / अलज / गण्डुज / वैजयन्त / शालूक / उपरत / सच्छेद / एषां नित्यस्त्रीविषयत्वादप्राप्ते पाठः / / क्रोष्ठु-सरस् अनयोरनकारान्तत्वादप्राप्ते पाठः / / अनड्वाही / अनडुही / प्रत्यवरोहिणी पृथिवी आग्रहायणी / तथा एहि / पर्येहि / अनयोरिदम्तत्वाद्विकल्पे प्राप्ते नित्यार्थेऽत्र पाठः / सूत्रे बहुवचनमाकृतिगणार्थम्, तेन नद मह भष प्लव चर गर तर गाह देव सूद अराल उदवड चण्ड उमाभङ्ग हरीकण वटर / अधिकार / एषण इति करणे एषणी वैद्यशलाका, करणादन्यत्र एषणा / इति गौर्यादिगणः // 19 // अणजेयेकण्नस्नटिताम् // 2 // 4 // 20 // अणादिप्रत्ययानां योऽकारस्तदन्तानाम्नः प्रत्यासत्तेस्तेषामेवाणादीनां वाच्यायां स्त्रियां वर्तमानात् डीः स्यात् / अण्. औपगवी / तापसी / कुम्भकारी [उपजात] अञ्. वेदी / छात्री / चौरी / तापसी / एयण. सौपर्णेयी। वैनतेयी। एयच् / शिलेयी। एयञ् / शैलेयी। इकण्. आक्षिकी / नञ्. स्त्रैणी। स्नञ्. पौंस्नी। टित्. जानुदघ्नी। जानुद्वयसी। जानुमात्री। द्वयी। त्रयी। इत्यादि / गायनी। कुरुचरी / प्रत्ययसाहचर्यादागमटितो न भवति [इडागमस्य नञ् (न भवति)] पठिता विद्या / शुनीन्धयी। स्तनन्धयी। इत्यादौ तु धातोष्टिकरणस्यानन्यार्थत्वादटितोऽपि ङीः स्यात् / प्रत्यासत्त्या तैरेवाणादिभिः स्त्रिया विशेषणं किम् ? गौतमा कन्या // 20 // ___अ० औपगवी / उपगता गावो यस्याः / 'गोश्चान्ते०' (2 / 4 / 96) इति ह्रस्वः / उपगोरपत्यं ‘डसोऽपत्ये' (6 / 1 / 28) इति अण् / 'अस्वयम्भुवोऽव्' (7 / 4 / 70) इति उकारस्य अव् / 'वृद्धिः स्वरे०' (7 / 4 / 1) वृद्धिः / औ पश्चात् ङीः / / तापसी / तपस् तपोऽस्यास्तीति 'ज्योत्स्नादिभ्योऽण्' (7 / 2 / 34) / / कुम्भं करिष्यामीति व्रजति कुम्भकारी व्रजति ‘कर्मणोऽण्' (5 / 1 / 72) ततो ङीः / / 'अस्य ड्यां लुप्' (2 / 4 / 86) / वैदी-विदस्यापत्यं पौत्री वैदी 'विदादेवृद्धे' (6 / 1 / 41) अञ् / ततो डीः / छात्रीत्यादि च्छत्रं शीलमस्य च्छात्रः, चुरां शीलमस्य चौरः / तपस् / तपः शीलमस्य तापसः अस्थाच्छत्रादेरञ् (6 / 4 / 60) इति सूत्रेण अञ् / वृद्धिः / स्त्री चेत् च्छात्री / चौरी / तापसी / 'अणजेये.' इति ङीः / / सूत्रे एय इति अनुबन्धरहितग्रहणम्, तेन एयण, एयच्, एयञ् एषां यथा