________________ न सरखतीकण्ठाभरणे विविधबन्धाः / PROPDOOOOOOOOOOD 203 DOOOOOOOOZ (18) पादगोमूत्रिकाबन्धःगतिरुच्चावचा यत्र मार्गे मूत्रस्य गोरिव / गोमूत्रिकेति तत्प्राहुर्दुष्करं चित्रवेदिनः॥ कान्पु /म/ न/ XNXलोत या डिAAVAAVAA कांक्षन्पुलोमतनयास्तनपीडितानि वक्षस्थलोच्छ्रितरयाञ्चनपीडितानि / पायादपायभयतो नमुचिप्रहारी मायामपास्य भवतोऽम्बुमुचां प्रसारी // (द्वि. प. पृ. 284 श्लो. 324 ) प्रस्तारः (19) अर्धगोमूत्रिका| मो/दिव/समय ता/मरस भा/स। नतम यो रिहा और य में वि/न नमो दिवसपूराय सुतामरसभासिने / नतभव्यारिदाराय सुसारलयभाविने // अत्र गोमूत्रिकाश्लोकोऽयमुत्तिष्ठतिनतदिव्यासदाराय सुसामलसभासिने / नमो भवरिपूराय सुताररयभाविने // (द्वि. प. पृ. 288 श्लो. 336,337) Popcompopcomp0PDFOpen PDPPRPORN maraG006GGGFGGGCHHr00000908 GOGDIOpeAGDIGOOGaaaaaaaaaaaaaaaaDeepesee