________________ 2 परिच्छेदः / सरखतीकण्ठाभरणम् / 307 आक्षिप्तिका यथा'पअपीडिअमहिसासुस्देहेहिं मुअणभअलुआवससिलेहिं / सुरमुहदेवबलिअपवलच्छिहिं जअइ सहासं वअणु महलच्छिहिं 388 पदपीडितमहिषासुरदेह बनभयलावकशशिलेखैः / सुरसुखदातृवलितधवला:जयति सहासं वदनं महालक्ष्म्याः // ] सेयमभिधित्सितरागविशेषप्रयोगमात्रफलं वचनमाक्षिप्तिका / / ध्रुवा यथा'म अवहणिमित्तणिग्गअमइन्दसुण्णं गुहं णिएऊण / लद्धावसरो गहि उण मोत्तिआई गओं वाहो // 389 // [मृगवधनिमित्तनिर्गतमृगेन्द्रशून्यां गुहां निरूप्य / लब्धावससे गृहीत्वा मौक्तिकानि गतो व्याधः // ] सेयं पात्रप्रवेशरसानुसन्धानादिप्रयोजना ध्रुवा // यदाङ्गिकैकनिर्वर्त्यमुज्झितं वाचिकादिभिः / नर्तकरभिधीयेत प्रेक्षणाक्ष्वेडिकादि तत् // 142 // तल्लास्सं ताण्डवं चैव छलिकं संपया सह / हल्लीसकं च रासं च षट्प्रकारं प्रचक्षते // 143 // तेषु लास्यं यथा'उचिउ वालीयिअ पन्थहिं जन्तउ / पेक्खमि हत्थं होइ जइ लोअणवन्तउ // 390 // ' ... [उच्चा पालिः प्रियः पथा याति / प्रेक्षे हस्तं भवति यदि लोचनवात् // ] तदिदं शृङ्गारसप्रधानखाल्लास्यम् //