________________ हे देव ! चांदनी की तरह व्यापक आपके मुख की कान्ति को देख कर जिस प्रकार चन्द्र-किरणों के द्वारा कुमुद विकसित हो जाते हैं उसी प्रकार निश्चय ही सज्जनों के मुख प्रसन्न हो जाते हैं / / 7 // घटी पटीयसी सैव तद् गलवृजिनं दिनम् / समयोऽसौ रसमयो यत्र त्वदर्शनं भवेत् // 8 // हे देव ! वही घड़ी उत्तम घड़ी है, वह दिन पापनाशक दिन है तथा वह समय रसमय-आनन्दप्रद है कि जिसमें आपके दर्शन हो // 8 // श्रीशमीनाभिधः पार्श्वः पार्श्वयक्षनिषेवितः / इति स्तुतो वितनुतां 'यशोविजय'सम्पदम् / / 6 // इस प्रकार (मेरे द्वारा) स्तुति किये गये, पार्श्वयक्ष से सेवित, 'श्रीशमीन'' नामक पार्श्वजिनेश्वर यश, विजय और सम्पत्ति को प्रदान करे // 6 // __ (प्रस्तुत पद्य में स्तुतिकर्ता महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज ने प्रासंगिक अपना नाम भी 'मुद्रालङ्कार' के रूप में संयुक्त कर दिया उपर्युक्त स्तोत्र भगवत्-प्रतिमा के दर्शन की महत्ता को अभिव्यक्त करता है / तथा इस स्तोत्र का प्रथम पद्य प्राप्त नहीं हुआ है।) 1. यहाँ 'शमीन' शब्द एक ओर तो इस नामवाले गांव का सूचन करता है तथा दूसरी ओर शमी-शान्त चित्तवाले तपस्वी जनों के इन = स्वामी का सूचन करता है जो यथार्थ है। ---सम्पादक