________________ [3] श्रीपा/जनस्तोत्रम्' श्रीपार्वजिन-स्तोत्र (स्वागता-छन्द) ऐन्द्रमौलिमरिणदीधितिमाला- पाटले जिनपदे प्ररिणपत्य / संस्तवीमि दुरितद्रुमपाश्र्वं भक्तिभासुरमना जिनपार्श्वम् // 1 // इन्द्र के मुकुट में जटित मणियों की किरणों से (प्रणाम करते समय) कुछ लाल वर्णवाले श्रीजिनेश्वर देव के चरणों में प्रणाम करके, उनकी भक्ति से उज्ज्वल मनवाला मैं-'यशोविजय' पापरूपी वृक्ष को काटने में कुठाररूप श्रीपार्वजिनेश्वर की स्तुति करता हूँ // 1 // अस्य सम्प्रति जनस्य रसज्ञा, त्वद्गुणौघगणनास्पृहयालुः / उद्यतं तुलयति स्थितमुर्त्यां, स्वर्गशाखिकुसुमावचयाय // 2 // हे देव ! इस समय इस स्तुतिकर्ता की जिह्वा जो कि आपके गुणसमूहों की गणना के लिये लालायित हो रही है, वह- पृथ्वी पर रहते हुए स्वर्ग में स्थित कल्पवृक्षादि के पुष्पों को चुनने का प्रयास करनेवाले 1. इदं स्तोत्र पूज्यरूपाध्यायैर्वाराणस्यां रचितम् / अत्रैवारम्भे "ऐ नमः॥ सकलवाचकशिरोवतंसमहोपाध्याय * श्रीकल्याणविजयगणिशिष्यमुख्यपण्डितश्रीलाभविजयगरिणगुरुभ्यो नमः // " इति मूल प्रतावधिकः पाठः /