SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 82] भावना रखते हैं / जैनसमाज, जैनसंस्कृति और जैनसाहित्य का विदेश में भी गौरव बढ़े, जैनधर्म का प्रचार एवं पर्याप्त विस्तार हो और आनेवाली पीढ़ी जैनधर्म में रस लेती रहे, इसके लिए आप सतत चिन्तनशील हैं और तदनुकूल नये-नये मार्ग भी प्रशस्त करते रहते हैं। __ पू० मुनिजी के इस सर्वतोमुखी विकास में आपके दादागुरु प० पू० प्राचार्यदेव श्रीविजय प्रतापसूरीश्वर जी महाराज तथा आपके गुरुवर्य प० पू० प्राचार्यदेव श्रीविजय धर्मसूरीश्वर जी महाराज की कृपादृष्टि ने बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग लिया है / आज भी इन दोनों गुरुवर्यों की आप पर असीम कृपा है और वह आपको भविष्य में केवल भारतवर्ष के ही नहीं, अपितु विश्व के एक आदर्श साहित्य-कलाप्रेमी साधु के रूप में महनीय स्थान प्राप्त कराएगी, ऐसी पूर्ण प्राशा है / ऐसे अनुपम विद्वान्, साहित्य-कला-रत्न मुनिवर्य श्रीयशोविजय जी महाराज ने 'स्तोत्रावली' का अनुवाद, सम्पादन एवं उपोद्धातलेखन का कार्य देकर मुझे अपने विचारों को प्रस्तुत करने का जो अवसर दिया है उसके लिए मैं पूर्ण आभारी हूँ। ___ इस कार्य में जो अच्छाइयाँ हैं वे मुनिराजजी की हैं तथा जो त्रुटियाँ हैं वे मेरी अल्पज्ञता अथवा जैन शास्त्रीय अज्ञानता से हुई होंगी। अतः सुधी पाठक गण उन्हें सुधार कर पढ़ें और यथावसर हमें सूचित करने की कृपा करें जिससे भविष्य में सुधार किया जा सके। ___ एक बार पुनः मुनिराज श्रीयशोविजयजी महाराज एवं 'यशोभारती जैन प्रकाशन समिति' के अधिकारियों के सौजन्य और सौहार्द की सराहना करते हुए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ तथा इस ग्रन्थ के सर्वत्र सादर की कामना करता हूँ / अलं पल्लवितेन / 15 अगस्त 1975 विद्वद्वशंवद नई दिल्ली-२१ डॉ. रुद्रदेवत्रिपाठी
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy