________________ [77 लङ्कारों का प्रयोग उचित है ? जब भक्त सरल हृदय से प्राराध्य के चरणों में अपना निवेदन प्रस्तुत कर रहा हो, तब ऐसे शब्दाडम्बर की क्या आवश्यकता है?' इस का समाधान यह है कि- 'वस्तुजगत् के प्रति प्रात्म-संवेदना को अभिमुख बनाने का कार्य आवर्तधर्म का है। व्यक्ति-घटित जीवन-संवेदना का रूप-परिग्रह एवं एक वस्तु अथवा व्यापार के समान दूसरी वस्तु या व्यापार का विधान भावानुभूति को तीव्रता प्रदान करता है। आवर्त-धर्म के कारण जो साम्य उद्भूत होता है वह हमारे हृदय को प्रसृत करता है शेष सृष्टि के साथ गूढ़ सम्बन्ध की धारणा को स्थिर बनाता है तथा स्वरूप-बोध के साथ-साथ विचार-लोक की नई दिशा भी प्रदान करता है। इस दृष्टि से प्रार्थना या स्तति-स्तोत्रों में ऐसी अलंकार-योजना गड्भूत न होकर रसास्वाद के प्रति उन्मुख करने में सहायक ही होती है।' ___ इस दृष्टि से बारह कृतियों का यह संकलन भक्तजनों और सहृदय साहित्यिकों के लिए अवश्य ही अानन्दवर्द्धक बन गया है। ___ऐसी अपूर्व संकलना के लिए पूज्य श्रीयशोविजयजी महाराज समस्त साहित्यसेवी समाज के लिए आदर के पात्र हैं। ऐसे महनीय साहित्योद्धारक के जीवन और कृतिकलाप से भी हमारा पाठक-समाज परिचित हो तथा उनसे सहयोग और प्रेरणा प्राप्त करे' इस दृष्टि से उनका संक्षिप्त जीवन-चरित्र एवं कृति-परिचय देना भी हम अपना कर्तव्य समझते हैं, जो कि इस प्रकार है प्रधान सम्पादक मुनिश्री यशोविजयजी महाराज जन्म एवं परिवार गुजरात की प्राचीन दर्भावती नगरी आज 'डभोई' नाम से प्रसिद्ध है। इस ऐतिहासिक नगरी में वि. सं. 1972 की पौष शुक्ला द्वितीया