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________________ [ 63 यह स्तोत्र .'यशोविजय वाचक ग्रन्थ संग्रह' (पृ० 43-44 अ) में मुद्रित हुअा है। (4) श्रीशर्खेश्वरपाश्र्वनाथस्तोत्र श्री शर्खेश्वर पार्श्वनाथ के प्रति श्री उपाध्यायजी महाराज की परम भक्ति है। गुजरात में महेसारणा जंकशन से मांदरोड होकर हारीज जानेवाली रेलवे लाइन में हारीज स्टेशन से 15 मील दूरी पर यह प्रसिद्ध जैनतीर्थ है / समस्त भारत के जैनधर्मानुयायियों के लिए यह प्राचीनतम तीर्थ अतिशय श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। यहाँ विराजमान श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ प्रभु की भक्ति में लिखित 33 पद्यों का यह स्तोत्र उनके गुणोत्कीर्तन में अोतप्रोत है तथा 'ऐङ्काररूपां प्रणिपत्य वाचं' से प्रारम्भ करके 31 उपजाति और 2 आर्या छन्दों में निबद्ध है। ___ अलङ्कारों के अङ्कन को इसमें अधिक प्रश्रय नहीं मिला है तथापि विभिन्न तर्कों के द्वारा पार्श्व प्रभु की उपासना, भक्ति एवं उनकी वाणी का आदर सिद्ध करने के लिए उत्तम वर्ण-विन्यास हया है। 'जनुःपुपूर्षा और दुरितजिहासा' इस स्तुति के मूल प्रेरक हैं। अनेक दृष्टान्तों से इष्टदेव की विलक्षणता व्यक्त की गई है। एक पद्य में अन्य मेव की अपेक्षा पार्श्वप्रभु को विलक्षण मेघ बतलाया है तो अन्यत्र अपने स्मरण के प्रतिफल रूप में भवभ्रम के भजन की भावना अभिव्यक्त की है। ___ इस स्तोत्र में उपाध्यायजी ने हार्दिक भावों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ अपने अभीष्ट की पूर्ति की प्रार्थनाएँ भी अधिक की हैं / अपने द्वारा किए जाने वाले ग्रन्थ-निर्माण कार्य में सहायक बनने की प्रार्थना करते हुए वे कहते हैं अध्ययनाध्यापनयुगग्रन्थकृतिप्रभृतिसर्वकार्येषु / श्रीशलेश्वरमण्डन ! भूया हस्तावलम्बी मे // 33 //
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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