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________________ [61 का मन्दिर है अतः.यह स्तोत्र उनकी स्तुति में लिखा गया हो, यह भी सम्भावना है। हमने इसका अर्थ 'शमी+इन' शान्तचित्त तपस्वियों के स्वामी ऐसा किया है। स्तोत्र की भाषा अन्य स्तोत्रों की अपेक्षा सरल है। यह स्तोत्र अनुष्टुप् छन्द में रचित नौ पद्यों में निर्मित है, जब कि इसका प्रथम पद्य प्राप्त नहीं हुआ है / रचना में उपाध्यायजी की यमकवाली शैली के स्पष्ट दर्शन होते हैं। चौथे पद्य से आगे 'मूर्ति-स्फूर्ति, लोचने-लोचने, मानसं मानसं, वाणी वाणी, घटी घटी', आदि पदों का प्रयोग चमत्काराधायक है। भावगत सारल्य होने पर भी भाषागत प्रौढता यथावत् बनी हुई है। इसका शमोन-पार्श्वनाथ-स्तोत्र' नाम से 'जैनस्तोत्रसन्दोह' (भाग 1 पृ. 362-363) में यह प्रकाशन हुअा है। (3) श्रोपार्वजिनस्तोत्र ___ भगवान् पार्श्वनाथ के गुणों का 21 पद्यों में वर्णन करते हुए यह स्तोत्र बनाया गया है। इसी स्तोत्र को कुछ विद्वान् ‘वाराणसी-पार्श्वनाथ स्तोत्र' भी कहते हैं, जिसका कारण उपलब्ध प्रतियों में अङ्कित 'वागणस्यां रचितम्' पाठ है / तथा वाराणसी में तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के चार कल्याणक हुए हैं / भेलुपुर में ये कल्याणक हुए थे अतः पूज्य उपाध्यायजी ने सम्भवतः इसी से प्रेरित होकर इस रमणीयस्तोत्र की रचना की थी। सभी गद्य 'स्वागता' छन्द में निर्मित हैं। ग्यारह अक्षरों से बना यह छन्द विभिन्न वर्णन एवं गेयता के लिए प्रशस्त है / अलङ्कारयोजना की दृष्टि से इस स्तोत्र के प्रथम पद्य में 'दुरित-द्रम-पार्श्व' पद में रूपक का अच्छा समावेश है / पशु शब्द के अर्थ के लिए प्रयुक्त यम कान्तर्गत पार्श्व शब्द का कुठार अर्थ विस्मयावह है और यही पद 'जिनपार्श्व' के द्वितीय प्रयोग से 'तृतीय-चतुर्थ चरणान्तयमक' को
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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