________________ 60 ] रचना की पुष्पिका में स्तुति की रचना के किसी विशिष्ट उद्देश्य का संकेत न करके इतना ही कहा है कि 'यह स्तुति प्रमोद-पूर्वक की गई है', अतः यह एक स्वाभाविक भक्त एवं कवि-हृदय की भावना के अनुरूप है और साथ ही स्तुति के फलस्वरूप स्वयं कुछ भी नहीं माँगते हुए सज्जन स्तोतारों के कल्याण की कामना की है जो कि साधुजीवन के लिए सर्वथा शोभास्पद है तथा आशीर्वादात्मक अन्त्यमङ्गल भी है। अन्तिम पद्य में कर्ता का नाम 'व'चक' उपाधि से भूषित होकर आया है ? अतः इससे यह निश्चय होता है कि-श्रीयशोविजयजी गणी ने यह रचना 'वाचक' पद प्राप्ति के पश्चात् लिखी होगी। ___ इस स्तोत्र का गुजराती अनुवाद श्री ही. र. कापड़िया ने किया / है तथा यह 'चतुविशतिका' (पृ० 8384) में छपा है। (2) श्रीपार्श्वजिनस्तोत्र श्री पार्श्वनाथ भगवान् की स्तुति में लिखा गया यह स्तोत्र भगवान् के दर्शन, स्मरण तथा प्रणति की विशेषता व्यक्त करता है। इसकी रचना का हेतु श्री शमीनपार्श्वनाथ के दर्शन है। शमीन के स्थान पर 'जैन ग्रन्थावली' पृ० 106 में तथा 'जिनरत्नकोष' (वि०१, पृ. 451) में 'समीका' पद का प्रयोग हुअा है। अतः यह प्रश्न होता है कि ये दोनों स्तोत्र पृथक्-पृथक् हैं अथवा एक हैं ? वैसे कहीं-कहीं 'समीन' शब्द का प्रयोग भी हुआ है। ___ इस 'शमीन' पद का तात्पर्य यहाँ किसी ग्राम या तीर्थ विशेष से जुड़ा हुआ है। राधनपुर तथा गुजरात के बीजापुर के पास 'समी' नामक गाँव है। इसमें शंखेश्वर से कुछ दूर तथा राधनपुर के पास आए हुए 'समो' गाँव को लक्ष्य करके यह स्तोत्र बनाया गया है, ऐसा कुछ मुनिवरों का अभिमत है / वैसे केशरियाजी के मार्ग में 211 मील की दूरी पर 'समीना खेड़ा' तीर्थ है और वहाँ भी भगवान् पार्श्वनाथ