________________ 58 ] संकलन अब तक अन्यत्र प्रकाशित नहीं हुअा था; अंतः पूज्य, मुनिप्रवर श्री यशोविजयजी महाराज ने इन सबका व्यवस्थित संकलन किया, सम्पादन किया, गुजराती अनुवाद किया और अपनी देख-रेख में हिन्दी अनुवाद करवाया। पूर्वाचार्यों के अप्रकाशित साहित्य को प्रमाणित रूप में प्रकाशित करने की अभिरुचि तथा पूज्य उपाध्यायजी महाराज के प्रति अनन्य निष्ठा ही इस ग्रन्थ के प्रकाशन में मूल प्रेरक है। इसमें प्रकाशित स्तोत्रों का संक्षिप्त परिचय तथा साहित्यिक विमर्श इस प्रकार है(१) श्रीआदिजिनस्तोत्र __ प्रस्तुत स्तोत्र पुण्डरीक गिरि-श्रीशत्रुञ्जय तीर्थ पर विराजित श्री आदिनाथ भगवान् के गुणगान को माध्यम बनाकर लिखा गया है। इसमें पाँच पद्य गोतिरूप तथा अन्तिम पद्य वसन्ततिलका छन्द में निमित हैं / इस स्तोत्र को 'पुण्डरीक गिरिराज (मण्डन) स्तोत्र" और 'शत्रुञ्जयमण्डन श्री ऋषभदेवस्तवन' नाम से भी सम्बोधित किया गया है / प्रारम्भिक पांच पद्यों की रचना में प्रत्येक अर्धाली का प्रथम भाग 16 मात्रा और द्वितोय भाग 12 मात्रा में निर्मित है। द्वितीय चरण के अन्त में 'रे' सम्बोधन का प्रयोग हुआ है जिसे मिलाने पर इस चरण की 14 मात्राएँ हो जाती हैं। ऐसे पाँच पद्यों के समूह को 'कुलक' कहा जाता है / ___ इस में भगवान् ऋषभदेव के गुण-वर्णन में उनकी वाणी, योग, उदारता, प्रभा तथा गति आदि का वर्णन प्रमुख है। अधिकांश पद समास-बहल हैं और 'पादि जिनं वन्दे' इस वाक्य का सभी पद्यों के साथ अध्याहार किया जाता है। अलङ्कार की दृष्टि से इसमें 'यमक' १-यह नाम श्रीयशोविजय वाचक ग्रन्यसंग्रह' (पृ० 46 अ) में दिया है, जब कि दूसरा नाम 'गूर्जर साहित्य संग्रह' (वि० 1, पृ० 427-428) में दिया गया है।