________________ [ 55 साहित्य निम्नलिखित रूप में उपलब्ध होता है १-धार्मिक तथा २-दार्शनिक / धार्मिक साहित्य के १-ललित, २दार्शनिक और ३-प्रकीर्ण ऐसे तीन वर्ग हैं तथा दार्शनिक साहित्य में १-ज्ञानमीमांसा, २-न्याय, ३-पदार्थ-परामर्श (तत्त्वज्ञान) ४-परमतसमोक्षा, ५-अध्यात्म तथा ६-जीवन-शोधन ऐसे 6 वर्ग हैं। इनमें ललित-साहित्य का एक वर्ग 'स्तोत्र-साहित्य' है जिनमें से कुल 11 स्तोत्र प्रस्तुत पुस्तक में दिए गए हैं। इस तरह की मौलिक रचनाओं के अतिरिक्त उपाध्यायजी ने विवरणात्मक ग्रन्थ भी अनेक लिखे हैं जिनमें स्वोपज्ञ विवरण तथा अन्यकर्तृक ग्रन्थों के विवरण ऐसे दो वर्ग हैं / भाषा की दृष्टि से संस्कृत और गुजराती भाषा में ये विवरण प्रस्तुत हुए हैं। इस प्रकार के उपलब्ध संस्कृत स्वोपज्ञ विवरण 17, गुजराती स्वोपज्ञ विवरण 8, अन्य कर्तृक ग्रन्थों के संस्कृत विवरण 16 तथा अन्यकर्तृक ग्रन्थों के गुजराती विवरण 3 हैं / 37 संस्कृत ग्रन्थ स्वोपज्ञविवरणवाले नहीं हैं। प्राकृत की 6 कृतियाँ हैं जिनमें दो कृतियों पर स्वोपज्ञ टीकाएँ नहीं हैं और ये टीकाएँ संस्कृत में ही हैं / हिन्दी में 8 कृतियाँ उपाध्यायजी की प्राप्त हैं किन्तु उन पर कोई स्वोपज्ञ विवरण नहीं है। .. संस्कृत स्तोत्रों के अतिरिक्त 152 प्रादेशिक भाषा में रचित स्तोत्र तथा अन्यान्य कृतियों के परिशीलन से यह सहज स्पष्ट हो जाता है कि पू० उपाध्यायजी महाराज एक समर्थ रचनाकार थे और अपने पूर्ववर्ती प्राचार्यों के दाय को बहुत ही सतर्कता के साथ निभाते हुए उत्तरोत्तर महिमापूर्ण. साहित्य की सृष्टि में वे अत्यन्त आदरणीय स्थान को प्राप्त हुए हैं। . उनके जीवन-चरित्र की दो घटनाएँ भी यहाँ विशेष स्मरणीय हैं, जो उनकी अद्भुत स्मरण-शक्ति एवं अपूर्व प्रतिभा का परिचय कराती हैं