________________ के लाभ को प्राप्त करता है तथा इस प्रकार सम्यग्ज्ञानादि रत्नत्रयी का लाभ होने पर वह जीव आकाशवर्ती कल्पविमान में उत्पन्न होता है अर्थात् देवत्व प्राप्त करता है और अन्त में आराधना करके वह प्रात्मा मोक्ष को प्राप्त करता है। तात्पर्य यह कि परमात्मा के स्तवन और स्तुतिरूप भावमङ्गल से दर्शनशुद्धि के अतिरिक्त सम्यग्ज्ञान और क्रिया की भी विशुद्धि होती है तथा उससे उत्पन्न आत्मिकविशुद्धि ही जीव को मुक्ति के शिखर पर पहुँचाती है / श्रीमन्त अथवा अधिकारियों को की गई स्तुति निष्फल हो सकती है किन्तु तीर्थङ्करों की स्तुति करने पर वह निष्फल नहीं होती है। और वह परम्परा से बाह्य एवं प्राभ्यन्तर सुख को देती है। इस तरह स्तुति भी एक प्रकार के राजयोग का ही सेवन है। . ___ अन्य शब्दों में कहें तो अनन्तज्ञानी की स्तुति से अनन्तज्ञान प्रकट होता है, जैसे रागी की स्तुति करने से रागीपन प्रकट होता है उसी प्रकार वीतराग को स्तुति करने से वीतरागदशा प्रकट होती है और अनन्त वीर्यशाली की स्तुति करने से अनन्त वीर्य प्राप्त होता है। ___ तथा पुण्यानुबन्धी पुण्य की प्राप्ति और इष्ट मनोरथ की प्राप्ति भी सुलभ बन जाती है। - इन बातों को लक्ष्य में रखकर प्रस्तुत स्तोत्रों का नित्यपाठ, सार्थ मनन और आत्मीकरण करना प्रत्येक साधक के लिये अत्यावश्यक अपनी बात पूज्य उपाध्यायजी की रचनाएँ विद्वद्भोग्य मानी जाती हैं / उन की ज्ञानशक्ति प्रबल थी और संस्कृत-भाषा के ब्याकरण, अलंकार आदि से युक्त उत्कृष्ट कोटि की रचनाएँ वे धाराप्रवाहरूप से लिखा