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________________ [286 वस्तुएँ सुलभता से प्राप्त हो सकती हैं। मुनि जी के पास इनका अच्छा संग्रह है। ___-बालकों के लिए भगवान् महावीर की सचित्र पुस्तक तैयार हो रही है। शिल्प-साहित्य १६-शिल्प-स्थापत्य में गहरी प्रीति और सूझ होने के कारण अपनी . स्वतन्त्र कल्पना द्वारा शास्त्रीयता को पूर्णरूपेण सुरक्षित रखते हुए, विविध प्रकार के अनेक मूर्तिशिल्प मुनिजी ने तैयार करवाए हैं, इन में कुछ तो ऐसे हैं कि जो जैन मूर्तिशिल्प के इतिहास में पहली बार ही तैयार हुए हैं। इन शिल्पों में जिन मूर्तियाँ, गुरुमूर्तियाँ, यक्षिणी तथा समोसरणरूप सिद्धचक्र आदि हैं। आज भी इस दिशा में कार्य चल रहा है तथा और भी अनूठे प्रकार के शिल्प तैयार होंगे, ऐसी सम्भावना है। ___ मुनिजी के शिल्पों को आधार मानकर अन्य मूर्ति-शिल्प गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के जैनमन्दिरों के लिए वहाँ के जैनसंघों ने तैयार करवाए हैं। पूज्य मुनिजी द्वारा विगत 16 वर्षों से प्रारम्भ की गई अनेक अभिनव प्रवृत्तियों, पद्धतियों और प्रणालियों का अनुकरण अनेक स्थानों पर अपनाया गया है जो कि मुनिजी की समाजोपयोगी दृष्टि के प्रति आभारी है। . प्रचार के क्षेत्र में जैन भक्ति-साहित्य के प्रचार की दिशा में 'जैन संस्कृति कलाकेन्द्र' संस्था ने पू० मुनि श्री की प्रेरणा से नवकार-मन्त्र तथा चार शरण की प्रार्थना, स्तवन, सज्झाय, पद आदि की छह रेकर्ड तैयार करवाई हैं। अब भगवान् श्रीमहावीर के भक्तिगीतों से सम्बन्धित एल. पी. रेकर्ड तैयार हो रही है और भगवान् श्री महावीर के 35 चित्रों की स्लाइड भी तैयार हो रही है।
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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