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________________ [ 26 स्वरूप क्या है.? कर्म क्या है ? कर्म का स्वरूप क्या है ? इस चेतनस्वरूप आत्मा के साथ जडरूप कर्म का क्या सम्बन्ध है ? हर समय जीव को केवल सुख ही सुख का पूर्णरूपेण अनुभव हो, ऐसा कोई स्थान है क्या ? यदि है तो वह किस प्रकार प्राप्त हो सकता है ? इत्यादि अनेक बातों को जानते हैं / आज के वैज्ञानिकों को तो प्राणियों अथवा संसार के एक-एक पदार्थ के रहस्य को समझने के लिए अनेक प्रयत्न-प्रयोग करने पड़ते हैं। पर ये आत्माएँ तो बिना किसी प्रयत्नप्रयोग के, एकमात्र केवलज्ञान के प्रत्यक्ष बल से विश्व के सभी सचेतन प्राणी, यथार्थ तथा अचेतन द्रव्य-पदार्थों के आमूल-चूल रहस्यों को जान सकती हैं। उनकी त्रैकालिक स्थिति समझ सकती हैं। अपने आत्मबल से विश्व में यथेच्छ स्थल पर उड़कर जाना हो, तो पलभर में आ-जा सकती हैं। सर्वज्ञ वीतराग दशा को प्राप्त प्रभु हजारों आत्मानों को मङ्गल और कल्याणकारी उपदेश सतत प्रदान करते हैं तथा विश्व के स्वरूप के यथार्थरूप से ज्ञाता होने के कारण उसे यथार्थरूप में ही प्रकाशित भी करते हैं। ये अरिहंत भगवंत अपनी आयु को पूर्ण करके जब निर्वाण (देह से मुक्ति) प्राप्त करते हैं तब वे सिद्धशिला पर स्थित मुक्ति के स्थान में उत्पन्न हो जाते हैं। और वहां शाश्वतकाल तक आत्मिक सुख का अद्भुत आनन्द प्राप्त करते हैं जैसा कि मानन्द विश्व के किसी भी स्थल अथवा पदार्थ में नहीं होता। - यह सब अरिहन्तपद किन कारणों से ? किस प्रकार प्राप्त होता है, इसकी एक अच्छी-सी रूपरेखा प्रस्तुत की गई। संक्षेप में समझना चाहें तो- ये अरिहंत की आत्माएँ अठारह दोषों से रहित हैं। परम-पवित्र और परमोपकारी हैं / वीतराग हैं। प्रशमरस से पूर्ण और आनन्दमय हैं /
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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