________________ 272 ] (5) गुरुवर श्री विजयप्रभसूरीश्वरजी-ये पूज्य श्रीविजयहोरसूरीश्वरजी के पट्ट प्रभावक श्रीविजयसेन सरि, श्री विजयदेव सरि और श्री विजयसिंह सूरि के प्रदृप्रभावक थे। “जैन गूर्जरकाव्यसञ्चय" के अन्तर्गत विमलविजयजी द्वारा रचित श्री विजयप्रभसूरीश्वरजी के निर्माण की सज्झाय के अनुसार ज्ञात होता है कि, इनका जन्म वि० सं० 1677 को माध शुक्ल 11 एकादशी के दिन हुआ था। इनकी जन्मभूमि कच्छ (सौराष्ट्र) में मनोहरपुर थी। ये ऊकेश (ोश) वंश में उत्पन्न हुए थे। इनके पिता और माता का नाम श्रेष्ठिवर्य शिवगणजी और श्रीमती भारणी देवी था। __नौ वर्ष की आयु में सं० 1686 में श्रीविजयदेव सूरिजी से आपने दीक्षा प्राप्त की थी। उस समय आपका नाम 'वीरविजय' रखा गया था / सं० 1701 में पन्यासपद तथा सं० 1710 में,वैशाख शुक्ला दशमी को गान्धार नगर में सूरिपद प्राप्त हुआ था और उस समय 'श्रीविजय प्रभ सूरि' नाम से प्रसिद्ध हुए। नतनाकिनिकायनरप्रमदं, प्रमदप्रकरप्रसरन्महिमम् / महिमण्डलमण्डनमात्महितं. महितं जगता महताऽसुमता // 1 // इत्थं 'श्रीविजयप्रभ-सूरीश्वर'-सिद्धिदो जिनो जीयात् / देवक-पत्तनवासी, स्तुतो मया सुधनवृद्धिकरः // इत्यादि रूप में आपके द्वारा तोटक छन्द में रचित 'श्रीदेवपत्तननिवासि-जिनस्तवन', (७पद्यात्मक) प्राप्त होता है / इसके अतिरिक्त आपकी कोई अन्य रचना उपलब्ध नहीं है किन्तु उपाध्यायजी महाराज द्वारा लिखित स्तुतिगीति एवं उपर्युक्त स्तवन के रचना-सौष्ठव से आपके षट्दर्शन-वैदुष्य एवं काव्यकला-निपुणता का परिचय प्राप्त / होता है। -: 0 :