________________ 270 ] [प्रावश्यक टिप्पणी] प्रस्तुत 'विज्ञप्ति-काव्य' में कतिपय विशिष्ट बातों का उल्लेख हुया है, उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है (1) दीव-बन्दर-परिचय-यह नगर सौराष्ट्र (गुजरात) में ऊना, अजारा, देलवाड़ा, कोडीनार आदि नगरों के परिसर में समुद्र के निकट स्थित है। यह अतिप्राचीन नगर है तथा इसका वर्णन 'बृहत् . कल्पसूत्र' में भी प्राप्त होता है। इसका प्राचीन नाम 'द्वीप-पत्तन' था, उसी का अपभ्रंश नाम 'दीव' हो गया है। चारों ओर समुद्र और उसके बीच इसकी स्थिति होने से यह द्वीप कहलाता था। ___ मुनि सुव्रत स्वामी के शासन में अयोध्या नगरी के शासक इक्ष्वाकुवंशी 'अनरण्य' राजा हुए हैं, जिनका अपरनाम 'अजयपाल' था। इस राजा को एक समय पूर्वभव की आशातना के उदय से शरीर में कोढ़ (कुष्ट) आदि अनेक रोग हो गए थे। इसलिए ग्लानिवश वह अपने राज्य को छोड़कर श्रीसिद्धगिरि आदि तीर्थों की यात्रा के लिए निकल गया। वहाँ से घूमते-घूमते वह यहाँ द्वीप-पत्तन आया और यहीं अपना राज्य बनाकर निवास करने लगा। इतने में रत्नसार नामक एक व्यापारी इस मार्ग से अपने व्यापार के लिए जहाज लेकर परदेश की अोर जा रहा था। द्वीपबन्दर आने पर उसके जहाज में उपद्रव होने लगे, रत्नसार खिन्न हो गया और प्रभु-प्रार्थना की। तब अधिष्ठायक देव ने कहा कि 'यहाँ कल्पवृक्ष के सम्पुट में श्रीपार्श्वनाथ भगवान् का बिम्ब है, उसे ले जाकर अजयपाल राजा को अर्पित करो। उन भगवान के स्नात्रजल से उसके सभी रोग नष्ट हो जाएगें।' रत्नसार ने वैसा ही किया और प्रभु के स्नात्रजल से अजयपाल के रोग नष्ट हुए। . महाराजा कुमारपाल द्वारा यहाँ आदीश्वर भगवान् का भव्य मन्दिर बँधवाने का भी इतिहास में उल्लेख मिलता है / यहाँ