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________________ 268 ] . जसविजयाख्या विबुधा, अमरविजयसंज्ञकास्तथा विबुधाः। / रामविजय-बुधयुगली, परेऽपि ये पूज्यपदभक्ताः // 2 // साध्वीवर्गश्च तथा प्रमुखः शमरसंपटूकृतस्वान्तः। .. क्रमशः प्रमोदनीये नत्यनुनती तेषु सर्वेषु // 3 // महान् गच्छ के कार्य के भार को सँभालने वाले श्री विनीतविजय उपाध्यायजी और श्रीरतिवर्धन गरिण जी जो नवीन सपर्या-पूजा से श्रेष्ठ हैं उन्हें तथा.. पण्डित यशोविजय (जसविजय), पण्डित अमर विजय और पण्डित रामविजय (युगल) आदि अन्य जो भी श्रीचरणों के भक्त हैं तथा प्रमुख गुरु सहित साध्वी समूदाय जो शम-रूपी रस से अपने हृदय को निर्मल किये हुए हैं उन सब को क्रम से यथायोग्य मेरी वन्दना अनुवन्दना विदित करें॥ 1-2-3 / / अत्र [आर्या छन्द] जसविजयाख्या विबुधाः, सत्यविजयसंज्ञकास्तथा गरणयः। . भीमविजयाख्यगरणयो, हर्षविजयसंजका गणयः // 4 // चन्द्रविजयाख्यगरणयस्तत्त्वविजयसंज्ञकास्तथा गणयः / लक्ष्मीविजया गणयो, वृद्धिविजयसंज्ञका गणयः॥५॥ चन्द्रविजयाख्यगरणयः, पूज्यपदानुपनमन्ति भावेन / प्रणमति सङ्घोऽप्यखिलस्तदेतदखिलं हृदि निधेयम् // 6 // स्खलितमिहाज्ञानभवं होतव्ये ज्ञानपावके दीप्ते। ज्ञानाद्वैतनयदृशां प्रतिभात्यखिलं जगद्ज्ञानम् // 7 //
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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