________________ [ 267 मीमांसक होगा जो गुरुदेव के मनोवैभव को स्वीकार न करेगा? और गुरुदेव की स्वतन्त्र प्रकृति होने से जैसे सांख्यवादी प्रकृति को स्वतन्त्र मानते हैं वैसे ही उन्हें कौन सांख्यवादी नहीं मानता ? अर्थात् गुरुदेव मीमांसा-दर्शन एवं सांख्यदर्शन के मूर्तिमान रूप हैं // 23 // इत्थं षड्दर्शनाराम-प्रसरत्कोतिसौरभः / यः प्रतापप्रथाशाली शोभते स्फारगौरवः // 24 // इस प्रकार ( अद्वैत वेदान्त, पतञ्जलि प्रतिपादित योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और सांख्य रूपी) छः दर्शनों के बगीचे में फैलती हुई कीर्तिरूप सुगन्ध से जो गुरु युक्त हैं। और जो अपने प्रताप के विस्तार से युक्त परम गौरवशाली हैं वे शोभायमान हो रहे हैं / / 24 // . [उपजाति] अमूहशाचार्य-समूहवर्यहर्यक्षचर्या-विहितानुवादैः / सदाऽवधार्या हृदि सुप्रसादः, श्रीपूज्यपादैः प्रगतिस्त्रिसन्ध्यम् // 25 // इस प्रकार प्राचार्यों के समूह में श्रेष्ठ, सिंह के समान पराक्रमी श्रीपूज्य चरणों से मेरी विनम्न प्रार्थना है कि आप प्रसन्नता पूर्वक मेरी त्रिकालवन्दना स्वीकार करें // 25 // [विज्ञप्त्युपसंहारात्मकश्चतुर्थो भागः] [विज्ञप्ति का उपसंहारात्मक चौथा भाग] तथा यत्रवाचकविनीतविजया विधृतमहागच्छभारविनियोगाः। * वर्द्धमानरसविबुधाः, . प्रत्यग्रसपर्यया वर्याः // 1 / /