________________ [ 255 द्वारा पान करके क्षार बना देनेरूप पराभव का स्मरण करके'कहीं फिर से इन घटस्तनियों के गर्भ से उत्पन्न बालक मुझे पराभूत न कर दें' ऐसी शङ्का करते हुए क्षोभ-दुःख को प्राप्त होता है // 3 // नार्यो हारेषु रत्नानि दधते चाधरे सुधाम् / यद्गताः स्वपदं सिन्धुः किमित्यावेष्ट्य तिष्ठति // 4 // ___ जहाँ (दोवबन्दर में) स्त्रियाँ कण्ठगत हारों में रत्नों को और अधरों में सुधा को धारण करती हैं। (इस प्रकार रत्न एवं सुधा के निकल जाने पर भी मेरे कुछ चिह्न शेष हैं) यही सोचकर क्या समुद्र उसको आवेष्टित किये हुए हैं ? // 4 // अब्धिसङ्गतया शुभ्रभासा स्फटिकवेश्मनाम् / सदैव लक्ष्यते यत्र गङ्गासागरसङ्गमः // 5 // जहाँ (दीवबन्दर में) स्फटिक के बने हुए मकानों की श्वेतकान्ति की समुद्र के जल के साथ सङ्गति होने से सदा ही गङ्गा और सागर का सङ्गम प्रतीत होता है // 5 // अप्येकमिन्दुमुवीक्ष्य स्यादब्धेरुत्तरङ्गता। नारीमुखेन्दुकोटीभिर्यत्र सा वचनाऽतिगा // 6 // [संसार में यह प्रसिद्ध है कि] एक चन्द्रमा को देखने से समुद्र में भरती आ जाती है किन्तु यहाँ (दीव बन्दर में) तो स्त्रियों के अनेक मुखचन्द्र विद्यमान हैं अतः उन सबको देखकर समुद्र में कितना ज्वार आता होगा? यह कहना कठिन है / / 6 // नानेन महता सार्द्ध स्पर्धा युक्तेति चिन्तयन् / यस्मै किमधिरागत्य ददौ दुहितरं निजाम् // 7 //