________________ [ 253 [उपजातिः] तमोदृशोदारपवित्रचित्र-चरित्रसन्त्रासितशत्रुवर्गम् / अनर्गलस्वर्गसुखापवर्ग-निसर्गसंसर्ग-समर्थमग्रयम् // 20 // सुरनुचिन्तामणिकामकुम्भस्वर्धेनुवर्गादधिकप्रभावम् / समुल्लसल्लब्धिसमृद्धिपूर्ण, सदा चिदानन्दमयस्वभावम् // 21 // जगद्गाप्यायककान्तिकान्तं, संसेवितोपान्त्यममर्त्यवृन्दैः / श्रीअश्वसेनान्वयपद्महस, श्रीपार्श्वनाथं प्रणिपत्य मूर्ना // 22 // अब तीन पद्यों के 'विशेषक' द्वारा प्रणति-निवेदन करते हैं ऐसे उपर्युक्त उदार, पवित्र एवं विस्मयकारी चरित्रों से शत्रुसमूह को भयभीत करनेवाले, बिना किसी रोक-टोंक के स्वर्गसुख तथा मोक्ष का स्वाभाविक संसर्ग करने में समर्थ, सर्वाग्रणी; कल्पवृक्ष, चिन्तामणि, कामघट और कामधेनु के वर्ग से भी विशिष्ट प्रभावशाली, अनन्त लब्धिरूप समृद्धि से परिपूर्ण, सत्-चित्-आनन्दमय स्वभाववाले, जगत् के नेत्रों को शान्ति पहुँचानेवाली कान्ति से कान्त-मनोहर, निकटस्थ देवसमूह द्वारा संसेवित तथा श्रीअश्वसेन महाराज के वंशरूपी कमल को विकसित करने के लिये हंस-सूर्य के समान भगवान् श्री पार्श्वनाथ को मस्तक झुकाकर प्रणाम करके मैं 'यशोविजय'-प्रस्तुत / पत्रकाव्य की रचना करता हूँ ] // 20-21-22 //