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________________ 248 ] स्वस्ति श्रियं यच्छतु भक्तिभाजामुद्दामकामद्रुम-सामयोनिः / धर्मद्रुमारामनवाम्बुवाहः, सुत्रामसेव्यः प्रभुपार्श्वदेवः // 2 // निरंकुश-उन्मत्त कामदेवरूपी वृक्षों के लिये हाथी के समान, धर्मरूपी वृक्षों के लिये नवीन मेघ के समान तथा इन्द्र के द्वारा सेवनीय भगवान् श्रीपार्श्वनाथ भक्तों को मङ्गल-लक्ष्मी प्रदान करें / / 2 // स्वस्ति श्रियामाश्रयमाश्रयामः, स्वनाममन्त्रोद्धतभक्तकष्टम् / . सुस्पष्टनिष्टङ्कितविष्टपान्तवितिभावं जिनमाश्वसेनिम् // 3 // मङ्गल-लक्ष्मी के धाम, अपने नाम-मन्त्र के स्मरण-मात्र से ही भक्तों के कष्ट का निवारण करनेवाले तथा स्पष्ट रूप से ही निराकृत कर दिया है बार-बार के जन्म को जिसने ऐसे श्रीअश्वसेन महाराजा के पुत्र श्रीपार्श्वजिनेश्वर की हम शरण प्राप्त करते हैं / / 3 / / स्वस्ति श्रियां गेहमुदारव्हं, मरुन्महेलाभिरखण्डितेहम् / अपासितस्नेहमहेयभावं, पावं महेशं वतिनां श्रयेऽहम् // 4 // मङ्गल-लक्ष्मी के प्रावास. उदार शरीरवाले, देववनितानों के द्वारा भी द्रवित नहीं होनेवाले अर्थात् दृढ-सङ्कल्प, वीतराग, सुस्थिर 'विज्ञप्तिकाव्य' है अत इस रूप में प्रकाशित करना उचित समझा गया है। यह नाम 'यशोदोहन' ग्रन्थ में श्री हीरालाल रसिकदास कापडिया ने दिया है। अतः हमने भी यही नाम रखा है। यह विज्ञप्ति चार विभागों में विभक्त है' ऐसा इसकी श्लोक संख्या से अनुमान होता है जिनमें क्रमशः १-पार्श्वप्रभु-वर्णन, २-दीवबन्दर नगर वर्णन, ३-गुरुवन्दना तथा ४--उपसंहार हैं। इसी आधार पर यहां चार विभागों की योजना भी कल्पित की गई है। -सम्पादक
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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