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________________ 240 ] स्त्री, भ्रूण, गो और ब्राह्मण की हत्या से लगे हुए पाप के कारण अधःपतन की ओर जाते हुए बड़े-बड़े हिंसक डाकू भी समाधि-समता का आलम्बन लेने से उच्च पद को प्राप्त हुए हैं // 24 // 'निरञ्जनाः शङ्खवदाश्रयन्तोऽस्खलद्गतित्वं भुवि जीववच्च / वियद्वदालम्बनविप्रमुक्ताः, समीरवच्च प्रतिबन्धशून्याः // 25 // समाधि-साम्य को प्राप्त किये हुए मुनीन्द्र किस प्रकार शोभित होते हैं ? यह बतलाने के लिये 'श्रीकल्प-सूत्र' के छठे व्याख्यान में आये हुए विशेषणों तथा उदाहरणों से ५-पांच श्लोकों में यहाँ वर्णन किया गया है / यथा- . समाधि साम्य को प्राप्त मुनीन्द्र शङ्ख के समान निरञ्जन-निर्मल, संसार में जीव के समान अस्खलित गतिवाले, आकाश के समान आलम्बन से रहित तथा वायु के समान प्रतिबन्ध से शून्य होकर स्वच्छन्दरूप से शोभित होते हैं। (पद्य संख्या 25 से 26 तक के पद्यों के लिये अन्तिम पद्य की क्रिया का यहाँ अध्याहार हुआ है) // 25 // शरत्सरोनोरविशुद्धचित्ता, लेपोज्झिताः पुष्करपत्रवच्च / गुप्तेन्द्रियाः कूर्मवदेकभावमुपागताः खङ्गिविषाणवच्च // 26 // तथा वे मुनीन्द्र-शरद् ऋतु में जैसे सरोवर का जल शुद्ध होता है उसके समान शुद्ध चित्तवाले, कमल-पत्र के समान निर्लेप, कछुए के समान गुप्त इन्द्रियवाले और खड्गी-गेंडे के सींगों के समान (दो होते हुए भी) एकीभाव को प्राप्त होकर सदा सुशोभित होते हैं // 26 // 1. इत आरभ्य सर्वाणि विशेषणानि उदाहरणानि च . कल्पसूत्रस्य षष्ठे व्यारप्याने द्रष्टव्यानि। 2. आफ्रिकाद्देशे तु द्विशृङ्गाः खड्गिनो भवन्ति /
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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