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________________ बनाया गया और वहाँ उनकी चरण-पादुका स्थापित की गई। पादुकाओं पर 1745 में प्रतिष्ठा करने का उल्लेख है। उपाध्याय जी के जीवन का निष्कर्षरूप परिचय 'यशोदोहन' नामक ग्रन्थ में मैंने दिया है वही परिचय यहाँ उद्धत करता हूँ जिससे उपाध्याय जी के जीवन की कुछ विशिष्ट झाँकी होगी। __ "विक्रम की सत्रहवीं शती में उत्पन्न, जैनधर्म के परम प्रभावक, जैन दर्शन के महान् दार्शनिक, जैन तर्क के महान् तार्किक, षड्दर्शनवेत्ता और गुजरात के महान् ज्योतिर्धर, श्रीमद् यशोविजय जी महाराज एक जैन मुनिवर थे। योग्य समय पर अहमदाबाद के जैन श्रीसंघ द्वारा समर्पित उपाध्याय पद के विरुदं के कारण वे 'उपाध्याय जी' बने थे / सामान्यतः व्यक्ति विशेष' नाम से ही जाना जाता है किन्तु इनके लिए यह कुछ नवीनता की बात थी कि जैनसंघ में आप विशेष्य से नहीं अपि तु 'विशेषण' द्वारा मुख्यरूप से जाने जाते थे। “उपाध्यायजी ऐसा कहते हैं, यह तो उपाध्यायजी का वचन है" इस प्रकार उपाध्यायजी शब्द से श्रीमद् यशोविजय जी का ग्रहण होता था / विशेष्य भी विशेषण का पर्यायवाची बन गया था / ऐसी घटना विरल व्यक्तियों के लिए ही होती है / इनके लिए तो यह घटना वस्तुतः गौरवास्पद थी। ___ इसके अतिरिक्त श्रीउपाध्याय जी के वचनों के सम्बन्ध में भी ऐसी ही एक और विशिष्ट एवं विरल घटना है। इनकी वाणी, वचन अथवा विचार 'टंकशाली' ऐसे विशेषण से प्रसिद्ध हैं। तथा 'उपाध्यायजी की साख (साक्षी। 'पागमशास्त्र' अर्थात् शास्त्रवचन ही हैं ऐसी भी प्रसिद्धि है। आधुनिक एक विद्वान् प्राचार्य ने आपको 'वर्तमान काल के महावीर' के रूप में भी व्यक्त किया था।
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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