________________ [ 126 विभिन्न शास्त्रों के अन्य विरोधी] तर्क इष्टापत्ति आदि बलवती सेना के सञ्चार मात्र से नष्ट नहीं हो जाते हैं ? // 6 // जात्यन्तरेण मिलितेन विभो ! समर्थे, क्षेपो न युज्यत इति क्षणिकत्वसिद्धिः, जात्यन्तरा ननु भवादपि च प्रवृत्तिः, सामान्यतो हि घटते फलहेतुभावात् // 10 // हे विभो ! “समर्थ कारण अपने को पैदा करने में विलम्ब नहीं करता” इस नियम के अनुसार अंकुर को उत्पन्न करनेवाले बीजों में ही अंकुर-सामर्थ्य मानना पड़ता है और उसके नियमन के लिए उनमें 'कुर्वद्रूपत्व' नामक जात्यन्तर भी मानना आवश्यक होता है / परन्तु यह बात जात्यन्तर से यूक्त व्यक्तियों को क्षणिक माने बिना उत्पन्न नहीं हो सकती। अतः उन्हें क्षणिक मानना परमावश्यक हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु की क्षणिकता का बोध करते हैं। पर क्षरिणकता की सिद्धि का उनका यह मार्ग युक्ति-सङ्गत नहीं है, क्योंकि अंकुर पैदा करनेवाले बीजों में प्रत्यक्ष अथवा अनुमान से उस जात्यन्तर का अनुभव नहीं होता, इसके अतिरिक्त उस जाति से युक्त बीजों को ही अंकुर का कारण मानने पर अंकुर पैदा करने की इच्छावाले कृषक की कुसूल (बीज संग्रह का पात्र) में स्थित बीज जो उस जाति से शुन्य होने के नाते अंकूर के कारण नहीं कहे जा सकते, उनके संरक्षण एवं वपन में प्रवृत्ति न होगी, क्योंकि "जिस वस्तु की इच्छा मनुष्य को होती है उसकी कारणता का ज्ञान जिसमें होता है उसी के ग्रहण और संरक्षण में उसकी प्रवृत्ति होती है' यह नियम है। इसलिये बीजसामान्य में अंकुरार्थी कृषक की प्रवृत्ति की सिद्धि के लिये बीज-सामान्य - को अंकुर का कारण मानना आवश्यक है // 10 //