________________ 112 ] को धारण करती है, क्योंकि ज्वर होने पर वैद्य की सलाह के बिना अधिक मधुर भोजन करना विष के समान नहीं हो जाता है क्या ? // 61 // शास्त्राणि हिंसाद्यभिधायकानि, यदि प्रमाणत्वकथा भजन्ते। हविर्भुजः कि न तदातितीवाः, पीयूषसाधर्म्यमवाप्नुवन्ति // 2 // हे जिनेश्वर ! यदि हिंसा को बतानेवाले शास्त्र प्रामाणिकता की कोटि में मान्यता प्राप्त करते हैं तो अत्यन्त तेजस्वी अग्नि अमृत के समान तेजस्वी क्यों नहीं हो सकती है ? // 12 // विधाय मूर्धानमधस्तपस्यया, किमुच्चमन्त्रव्रतशीलशीलनः। श्रुतं न शर्लेश्वरनाम विश्रुतं, किमत्र विद्याव्रजबीजमुज्ज्वलम् // 3 // हे जिनेश्वर ! सिर को नीचे रख कर (तथा पाँवों को ऊपर रख कर) तपस्या करने से तथा उच्च मन्त्र, व्रत और प्राचार के पालन से भी क्या लाभ है ? यदि यहाँ समस्त विद्याओं के मूल, उज्ज्वल एवं प्रसिद्ध श्रीशङ खेश्वर पार्श्वनाथ का नाम नहीं सुना / / 63 // मदाम्बुलुभ्यभ्रमरारवेग, प्रवृद्धरोषं गिरितुङ्ग कायम् / प्रश्रान्तमान्दोलितकर्णतालं, प्रोन्मूलयन्तं विपिनं विशालम् // 14 // करप्रहारैः कुलिशानुकारैः, सन्त्रासयन्तं बहुवन्यजन्तून् / अभ्यापतन्तं द्विरदं निरीक्ष्य, भियं जनास्त्वच्छरणा न यान्ति // 5 // हे जिनेश्वर ! मदजल के लोभ से मँडराते हुए, भँवरों के शब्दों से क्रुद्ध, पर्वताकार विशालकाय, निरन्तर कानों को फड़फड़ाते हुए, बड़ेबड़े वृक्षों को उखाड़ देनेवाले और वज्र के समान संड के प्रहार से अनेक जंगली पशुओं को डरानेवाले हाथी को सामने आते हुए देखकर लोग आपकी शरण में आकर निर्भय नहीं बन जाते हैं क्या ? // 64 //