________________ [ 101 की जाति में उत्पन्न होकर भी समग्र भीग-फणाओं के प्रसार से पराङ्मुख. हो, यह विरोधाभास है। इसका समाधान यह है कि आप अ-हीन अर्थात् उत्तम कूल में उत्पन्न हो और भोग अर्थात् सांसारिक वासना से दूर हो / और जनार्दन-विष्णु के समान कार्य करने से वैसी हो प्रसिद्धि को प्राप्त हो किन्तु गरुड़ की शोभा को नहीं बढ़ाते हो अर्थात् गरुड़वाहन नहीं हो यह भी विरोधाभास हैं इसका समाधान यह है कि आप जन-अर्दन-लोगों की पीड़ा को दूर करने में प्रसिद्ध हो और विनययुक्त व्यक्तियों की शोभा को अवश्य बढ़ाते हो // 53 // जिनासहायेन विनिजितक्रधा, विना जिगीषां च विना रणोत्सवम् / त्वया जितं.यद् द्विषतां कदम्बकं, जगज्जनानन्दकरं न किन्नु तत् ? // 54 // हे जिनेश्वर ! राग-द्वेष को जीतनेवाले आपने बिना किसी की सहायता लिये विजय की कामना से रहित होकर युद्ध के बिना ही जो -शत्रुसमूह-काम-क्रोधादि को जीत लिया है, वह संसार के लोगों को अानन्द देनेवाला नहीं है क्या ? // .54 // उपेक्षमाणोऽप्युपकृत्य कृत्यविज्जगत्त्रयों यद् दुरिताददीधरः / परः सहस्त्रा अपि हन्त ! तत्परे, यशो न शोधुं निरताः प्रतारकाः // 55 / / - हे जिनेश्वर ! आपने अपने कर्तव्य को जानकर कई लोगों से उपे- . क्षित होते हुए भी उन पर उपकार करके तीनों लोक का जो पापों से उद्धार कर दिया है, उस यश को ढूंढने में अनन्त तारे भी समर्थ नहीं