________________ [16 प्रलोकलोकव्यंतिवृत्तिदक्षा, शक्तिस्त्वदीया समये स्मृता या। अस्मादृशां सा सहतामपायं, भेत्तुं क्षणाद्धेऽपि कथं विलम्बम् // 13 // हे देव ! जो आपकी शक्ति समय पर स्मरण करने पर समस्त लोकों के विशिष्ट जीवन के उपायों को बतलाने में निपुण है, वह शक्ति हम जैसे व्यक्तियों के विघ्नों-कष्टों को नष्ट करने के लिये तनिक भी विलम्ब कैसे कर सकती है ? अर्थात् आपकी शक्ति हमारे कष्टों को शीघ्र ही नष्ट कर देगी।। 13 / / प्रश्ने परेषां यदधीष्टदेश्य, त्वमेव देवो मम वक्तुमर्हः / ततोऽस्य भक्तस्य समीहितार्थ, पद्मावतीभोगिपती क्रियेताम् // 14 // हे देव ! दूसरों के प्रश्न में जो अधिक अभीष्ट उत्तर हो सकता है वह उत्तर दिव्यज्ञानवाले आप ही बता सकते हैं। अतः हे पद्मावती देवी और सहस्रफरणा श्रीपार्श्वनाथ ! इस भक्त के मनोवाञ्छित को प्राप दोनों पूर्ण करें // 14 // प्रदाः सदा नम्रसुरासुरेश ! प्रसूनमालां किल यां मनस्वी। त्वत्किङ्करस्यास्य तयैव विश्वे, प्रकाश्यतां देव ! चिरं जयश्रीः // 15 // सदा सुर और असुर के स्वामियों से नमस्कृत हे देव ! श्रेष्ठ मन वाले आपने मुझे जो पुष्पमाला दी, उसी से आपके इस सेवक की जयलक्ष्मी संसार में चिर काल तक जगमगाती रहे // 15 // कथाश्लथासत्य' पथःपरीक्षा, परीक्षकारणां हृदये निलीना / कलौ कुपक्षग्रहिलप्रतापे, त्वत्किङ्कराणां शरणं त्वमेव // 16 // . 1. सत्यसृतेः सत्यपयः वा पाठः साधुः /