________________ व्यवहारस्य विचारा: कप्पइ चेइयघरे ठाउं। अत्र कारणं दुन्भिगंधपरिस्सावी तणुरप्पेसऽण्हाणिया / दुहा वाउवहो वेव तेण ट्रति न चेइए // तिणि वा कढ्ढए जाव थुइओ तिसिलोइया / ताव तत्थ अणुण्णायं कारणमि परण वि ( 72, 73) इति व्यवहारे देवद्रव्यस्य तीर्थशरनिमित्त कृते समवसरणे साधूनां कल्पते इत्यस्य च जिनगृहनिवासनिषेधस्य स्तुतित्रयस्य च विचारः नवमोद्देशके। (वर्षाप्रवेशादिविचार) चउग्गुणोववेयं तु खेत्त होइ जहण्णय / तेरसगुणमुक्कोसं दोण्ह मज्झमि मज्झिमग // 67 // महई विहारभूमी विधारभूमी य सुलभवित्ती य / सुलभा वसही य जहि जहण्णगं वासखेत्तं तु // 68 // चिखल्ल 1 पाण 2 थंडिल 3 वतही 4 गोरस 5 जणाउले 6 वेज्जे 7 / ओसह 8 निचया९हिवई 10 पासंडा 11 भिक्ख 12 सज्झाए // 69 // खेत्ताण अणुण्णवणा जेट्टा मूलस्स सुद्धपांडवए / अहिगरणो माणो मा मणसंतावा न होहिति // 71 // जयणाए समणाण अणुण्णवित्ता वसंति खेत्तबहिं / वासावासट्टोण आसाढे सुद्धदसमीए // 93 // संविग्गबहुलकाले एसा मेरा, पुराउ आसी य / इयरबहुले उ संपइ पविसंति अणागयचेव // 98 // // व्यवहारे दशमोद्देशके वर्षाप्रवेशादिविचारः // अष्टविधा गणिसंपद् अट्टविहा गणिसंपय एकेका चउविहा उ बोद्धव्वा / एसा खलु बत्तीसा ते पुण ठाणा इमे हुंति // 252 // यार 1 सुय 2 सरीरे 3 वयणे 4 वायण 5 मई 6 पओगमई 7 / एएसु संपया खलु अटुमिगा 8 संगहपरिण्णा // 253 // आयारसंपयाए संजमधुवजोगजुत्तया पढमा 1 / / बिइय असंपग्गहिया 2 अनिययवित्ती भवे तइया 3 // 255 //