________________ 9 व्यवहारस्य विचारा: अणुसट्टउज्जमंती य विवज्जते चेइयाण सारवए / पडिवज्जति अविज्जंतए उ गुरुया अभत्तीए // 5 // चूर्णियथा--- कस्तइ आयरियस्स सिस्सिणी सा सुत्तत्थाणि घेत्तु धम्मकहाओ य पढित्ता निमित्ताणि य घेत्त आइग्गहणेण घिजाओ मंताणि चुण्णजोगा य जाणित्ता निग्गया गच्छाओ ताहे सा इन्भइणं इत्थियाओ आउट्टावेत्ता संथवेण जिणाययण कारिता विउलं सकारसमुदयं अणुभवइ / अहण्णया सा महत्तरिया से तीसे संबोहणट्टाए वा विहारपत्तियं वा चेइयमहे वा तत्थ गया। तओ सा सिस्सिणी तीसे परितुहा मथहरियाए विरूवरूव असणाइ वत्थाणि य महारिहाणि. निजरावेइ इभाइघरेलु / अणुसट्टगाहा / ताहे सा महत्तरियाए अणुसट्रा / किं अउजे! पासत्थत्तणेणं अच्छसि ? उज्जमाहि अहवा अप्पणा चेव उजमिउकामा एवं तीर उवट्टियाए जइ चेइयाण अण्णो सुस्सूसओ अस्थि तो पडिकमाविजइ तस्स ठाणस्स। अह अण्णो नवि चेइंयाणं सुस्सूसओ तो जई ताओ पडिकामित्ता थिति तो चउगुरुय तासिं चेइयाण अभत्तिनिमित्तं / इति प्रतिष्ठाविचारः लिंगिकारितादिजिनचैत्यवंदनादिविचारश्चेति / अह नवरौं पक्खियाइसु अजाओ चेइयवंदियाओ पट्टियाओ इति / तिणि दिणे पाहुण्णं सव्वेसि असइ बालवुड्ढाणं / जे तरुणा सग्गामे वत्थव्वा बाहि हिंडंति // 86 // अटुमि पक्खिए मोत्तु बायणाकालमेव य / पुव्युत्ते कारणे वावि गमणं होइ अकारणे // 229 // व्यवहारे सप्तमस्य समर्थिताः / अष्टमे तु यथाउच्चार पासवण, अणुपंथे चेव आयरतस्स। लडओ य होइ मासो, चाउम्मासो य वित्थारो॥ (व्यव० भा० 177) नवमे यथा चेहयदव्व विभया करेज कोई नरो सयट्टाए / समण वा सोवहियं, विकेजा संजयटाए // 62 // चूणिर्यथा-. 'चेश्यदव्वं हत्वा चोरा विभएज / तत्थ कोइ अप्पणग' भाग