________________ निशीथ-विचाराः चूर्णियथा-तेण संपइणा रण्णा विसजिया, सरजाणि गंतुं अमाघायं घोसिंति, चेइयहरे कर्मिति रहजाणे य। अंधमिडकुदुकमरहट्टया एए पश्चंतिया, संपइकालाओ आरब्भ सुहविहारा जाया / संपइणा साहू भणिया-गच्छह एए पञ्चंतविसर बोहिता हिंडह, तओ साहूहिं भणियं-एए न किंचि कप्पाकप्पं वा एसणं वा जाणंति कहं विहरामो? ताहे तेण संपइणा 'समणगाहे' इत्यादि / प्रतिष्ठाविचार: षोडशोद्देशे। रहगओ पुप्फफले खजगे य कवडगवत्थमाई उक्खिरणे करेइ / तकंतपरंपरओ पलोट्टछिन्ने य भेय कायवहो / हिमुसलालविच्छुग संचयदोसा पसंगी य // 5766 // अस्थानमुक्ते भक्तादो। आहार उवहिदेहं गुरुणो संघट्टियाण पाएहिं / जे भिक्खू न खामेइ सो पावह आणमाईणि // 5781 // गुरुसंस्तारकस्थाने न पादो मोक्तव्यः, यतः - कमरेणु अबहुमाणो अविणय परियावणा य हत्थाई / संथारग्गहणमतो उच्छवणस्सेव वह रक्खा // 5783 // यथा वृतिरक्षायां इक्षुवनं रक्षितमेव / एवं गुरुसंस्तारके रक्षिते गुरवोपि रक्षिता इत्यर्थः। कप्पा आयपमाणा अडाइजा य वित्थडा हत्था / एयं मज्झिममाणं उकोसं हुंति चत्तारि // 5794 // उक्कोसेण चत्तारि हत्था दीहत्तणेण, एयं पमाणं अणुम्गहत्थं थेराण भवइ, पुहुत्ते वि छ अंगुला समहिया कजंति / दढो जो चोलपट्टो सो दीहत्तणे दो हत्था वित्थारेण हत्थो सो दुगुणो कओ समचउरंसो भवइ / जो दढदुब्बलो सो दीहत्तणेण चउरो हत्था सो वि चउगुणो कअ हत्थमेत्तो चउरंसो भवह चोलपट्ट इत्यर्थः /