________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये जे मे जाणति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेलु / . तेह आलोएउं उवडिओ सव्वभावेणं // 3873 // ' जह सुकुसलो वि वेजो अण्णस्स कहेई अप्पणो वाहिं / वेजस्स य सो सोउं तो पडिकम्म. समारभए // 3860 // जाणतेण वि एवं पायच्छित्तविहिमप्पणो निउणं / तह वि य पागडतरगं आलोएयव्वगं हाइ // 3861 / / तणकंबलपावारे कायवतूली य भूमिसंथारे / एमेव अणहियासे संथारगमाइ पल्लंके // 3907 // एतानि अनशनिनः कल्पन्ते इतिशेषः / जति ताव सावया कुलगिरिमंदरविसमकडगदुग्गेसु / साहति उत्तिमटुं धितिधणियसहायगा धीरा // 3912 // किं पुण अणगारसहायएण अण्णाण्णसंगहबलेण / परलोइओ न सकइ साहेउं उत्तिमो अट्रो // 3913 // सव्वाहिं वि लद्धीहिं सव्वे वि परीसहे पराइत्ता / सव्वे वि य तित्थगरा पाओवगया उ सिद्धिगया // 3916 // अवसेसा अणगारा तीतपडुप्पण्णणागता सवे / केई पाओवगता पञ्चक्खाणिगणिं केई // 3917 // सव्वाओ अजाओं सव्वे वि य पढमसंघयणवजा / सव्वे य देसविरता पञ्चक्खाणेण उ मरंति / / 3918 / / सवसुहप्पभावाओ जीवितसारातो सव्वजणिताती / / आहारातो न तरण न विजती उत्तिमं लाए // 3919 / / विग्गहगते य सिद्ध मात्त लोयंमि जत्तिया जीवा / सव्वे सव्वावत्थं आहारे हुंति उवउत्ता // 3920 / / तं तारिसगं रयणं सारं जं सव्वलेोगरयणाणं / . सव्वं परिच्चइत्ता पाओवगता परिहरंति // 3921 / / केइ परीसहेहिं वाउलीउवेतणुद्धतो वा वि। .