________________ निशीथविचाराः कप्प कहित्तु ठवणा सावणबहुलस्स पंचाहे // 3150 // अर्थ:-आसाढपुण्णिमाए पविट्टा, पडिवयाओ आरम्भ पंच दिणाई संथारग-तण-डगल-छार-मल्लगाईय गेण्हंति / ऐत्थ उ अणभिग्गहियं वीसइरायं सवीसई मासं / तेण परमभिग्गहियं गिहिनायं कत्तिओ जाव // 3151 // अर्थ:-इत्य आसाढपुण्णिमाए सावणबहुलपंचमीए वासपजोसविप वि अप्पणो अणभिग्गहियं / अहवा जइ गिहत्था पुच्छंति अजो ! तुम्भे एत्थ वरिसाकालं ठिया अह न ठिया ? एवं पुच्छिपहि अणभिम्गहियं ति संदिद्धं वक्तव्यं / वीसइरायं सवीसइरायं मासं / जइ अभिवढियकरिसं तो वीसइराय जाव अणभिग्गहिय / अह चंदवारसं तो सवीसइराय मास जाव अणभिग्गहिय तत्कालात् परतः अभिगृहीतं ' इह व्यवस्थिता' इति पुच्छंताण कहंति / असिवाइकारणेहिं अहवा वासं न सुट्ट आरद्धं / अभिवढियमि वीसा इयरेसु सविसईमासो // 3152 // अर्थ:-असिवाइपहि कारपोहिं जइ अच्छइ तो आणाइया दोसा। अह गच्छति तो गिहत्था भणति-पए सवण्णुपुत्तगा न किंचि जाणंति, मुसावायं च भासंति / ठियामो त्ति भणित्ता जेण निग्गया। तम्हा अभिवढियवरिसे वीसइराए गए गिहिनाय करिति / तिसु चंदघरिसेसु सवीसइराए मासे गए गिहिनायं करिति / अत्थ अहिगमासगो पडइ-(चटति) वरिसे तं अभिवढियवरिस भण्णइ / जत्थ न पडइ तं चंदवरिसं / सो य अहिगमासगो जुगस्स अंते मज्झे वा भवइ / जई अंते तो नियमा दो आसाढा भवंति अह मज्झे तो दो पोसा / सीसी पुच्छइ-कम्हा अभिवढियवरिसे वीसतिराय चंदवरिसे सवीसइमासो ? उच्यते-जम्हा अभिवइढियवरिसे गिम्हे चेव सो